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प्रवचनसार
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(१६) अन्य कारकोंसे निरपेक्ष-स्वयंभू आत्मा
मनहरण । ताही भांति विमल भये जे आप चिदानन्द । तासको स्वयंभू नाम ऐसो दरसायो है ॥ प्रापत भये अनन्त ज्ञानादि स्वभावगुन । आपहीते आपमाहिं सुधा बरसायों है । सोई सरवज्ञ तिहूँकालके समस्त वस्त । हस्तरेखसे प्रशस्त लखै सरसायो है ॥ ताहीके पदारविंद देवइन्द नागइन्द । मानुषेद वृन्द बंदि पूज हरषायो है ॥ ५२ ॥
पटकारक निरूपण . .
दोहा। निजस्वरूप प्रापतिविपैं, पर सहाय नहिं कोय । षट्मक र कारकनिमें, यह आतम थिर होय ॥ ५३ ॥ तासु नाम लक्षण सुगम, कहों जथारथरूप । जैननकी रीतिसों, ज्यों गुरु कथित अनूप ॥ ५४ ॥ करता करम करन तथा, संप्रदान उर आन । अपादान पुनि अधिकरन, ये षटकारक मान ॥ ५५ ॥
गीतिका । । स्वाधीन होइ कहै सोई, करतार ताको जानिये । करतारंकी करतृतिको, कहि करम कारक मानिये ।।