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कविवर वृन्दावन विरचित
जहिप मुनिमुद्रा धेरै, तदिप मुनि नहिं सोय । सोई संसृत तत्त्व है, इहाँ न संशय कोय ॥१७॥ ताको फल परिपूर्ण दुख, पंच परावतरूप । भमै अनन्ते काल जग, यों भाषी जिनभूप ॥ ९८ ।। और कोइ संसार नहिं, संसृत मिथ्याभाव । जिन जीवनिके होय सो, संसृनतत्त्व कहाव : ९९ ।।
(२) गाथा-२७२ मोक्षतत्व ।
अनंग शेखर-दण्डक । मिथ्या अचार टारिके जथार्थ तत्व धारिके,
विवेक दीप वारिके स्वरूप जो निहारई । प्रशांत भाव पायके विशुद्धता बढ़ाय पुत्र,
-बंध निर्जरायके अबंध रीति धारई । न सो भमै भवावली तरै सोई उतावली,
सोई मुनीशको पदस्थ पूर्णता सुसारई । यही सु मोखतत्व है त्रिलोकमें महत्त है, सोई दयानिधान भव्य वृन्दको उधाई ॥१०॥
दोहा । जो परदरवनि त्यागिकै, है स्वरूपमें लीन । सोई जीवनमुक्त है, मोक्षतत्त्व परवीन ॥१०१। (३) गाथा-२७३ उनका साधनतत्व ।
__ मनहरण । . सम्यक प्रकार जो पदारथको जानतु है,
आपा पर भेद मिन्न अनेकान्त करिकै ।