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कविवर वृन्दावन विरचित
है तुव प्रसाद सीझै ममकाज । यो करि विनय गहै गुन साज ।। सुपरदया दोनों उर धेरै । होय दिगंबर शिवतिय वरै ॥४०॥
अथ तपाचार धारण विधि ।। अहो दुवादश तप आचाग । अनशन अवमोदर्य उदारा ॥ व्रतपरिसंख्यारसपरित्यागी। 'विवक्तिसज्यासन बड़भ.गी।४१। कायकलेश छ वाहिज येहा। प्राच्छित विनय सकल गुनगेहा ।।।
वैयाव्रत रत नित स्वाध्याये । ध्यानसहित 'व्युतसर्ग बताये ॥४२॥ । मैं निहचै तोहि जानों सही | शुद्धातम सुभाव तू नहीं ॥
पै तथापि तबलों तोहि गहों । जबलों शुद्धातम निज लहों ॥४३॥ तुव प्रसाद सीझैं मम काज । यो करि विनय गहै गुन साज ॥ उभयभेद तप खेद न धेरै । महा हरप मनमें विसतरै । ४४॥
अथ', वीर्याचारावधारण विधि । , अहो सुशकत्ति बढ़ावनिहार । वीर्याचार अचारअधार ।। । मैं निहचै तोहि जानों सही । शुद्धातमसुभाव तू नही ॥४५॥
पै तथापि तबलों तोहि गहों । जबलों शुद्धातम निज लहों ॥ तुव प्रसाद सीझै मम काज । यों करि विनय गहै गुन साज ॥४६॥
दोहा । पंचाचार पुनीतको, इहिविधि धारै धीर । और कथन आगे सुनो, जो मेटै भवपीर ।। ४७॥ (३) गाथा-२०३ वह कैसा है उसका वर्णन ।
मनहरण । पंचाचारविधिमें प्रवीन जे अचारज जो,
__ मूलोत्तर गुनकरि पूरित अभंग है । १. विविक्तशय्यासन । २. बाह्य । ३. प्रायश्चित । ४. कायोत्सर्ग ।