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प्रवचनसार
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___ तव शुभ आयु नाम गोत पुन्यवर्गनाको,
कर्मपिंड बँधै यह सहज नियोग है ॥ अथवा मिथ्यातविर्षे अव्रत कषायरूप,
__ अशुभोपयोग भये पापको संजोग है । दोऊके अभावतें विशुद्ध उपयोग वृन्द, ___ तहां बंध खंडके अखंड. सुख भोग है ॥२२॥ (१२) गाथा-१५७ शुभोपयोगका कथन ।
मतगयन्द । जो जन श्री जिनदेवको जानत, प्रीतिसों वृन्द तहाँ लब लावै । सिद्धनिको निज ज्ञानतै देखिकै, ध्यापक होयके ध्यानमें ध्यावै ॥ । औ 'अनगार गुरूनिमें भक्ति, दया सब जीवनिमाहिं दिहावै । ताकहँ श्रीगुरुदेव वखानत, सो 'शुभरूपपयोग कहावै ॥२३॥ (१३) गाथा-१५८ अशुभोपयोग ।
मनहरण । इंद्रिनिके विषै और क्रोधादि कषायनिमें,
जाको परिनाम अवगाढागाढ़ रुखिया । मिथ्याशास्त्र सुनै सदा चित्तमें कुभाव गुने,
दुष्ट संग रंगको उमंग रस चुखिया । जीवनिके • घातको जतन करत नित,
कुमारग चलिमें उप्रमुख मुखिया । ऐसो उपयोग ' सोई अशुभ कहावत है,
जाके उरवसै वह कैसे होय मुखिया ॥२४॥ १. दिगम्बर । २. शुभोपयोग ।