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________________ प्रवचनसार [ १२५ M सत्रहीमें .फरसादि गुन, चारों हैं निरधार । वृन्दावन सरधा घरो, सब संशय परिहार ॥ ४४ ।। (७-८) गाथा-१३३-१३४ शेप अमूर्त द्रव्योंके गुण । है मनहरण । एके काल सरव दरवनिको थान दान, कारन विशेष गुन राजत अकासमें । धरम दरवको गमन हेत कारन है, जीव पुदगलके विचरन विलासमें ।। अधरम दर्वको विशेष गुन थिति होत, दोनों क्रियावंतनिके थित परकासमें । कालको सुभाव गुन वरतनाहेत करो, आतमाको गुन उपयोग प्रतिभासमें ॥ ४५ ॥ दोहा । ऐसे मूरतिरहितके, गुन संक्षेप भनंत । वृन्दावन तामें सदा, हैं गुन और अनंत ॥ ४६॥ जो गुन जासु सुभाव है, सो गुन ताहीमाहिं । औरनिके गुन औरमें, कबहूं व्यापैं नाहिं ॥ ४७ ॥ नमको तो उपकार है, पांचोपर सुन मीत । धर्माधर्मनिको लसै, जिय पुदगलसों रीत ।। ४८ ।। काल सबनिपै करतु है, निज गुनते उपकार । नव जीरन परिनमनको, यात होत विचार ॥ ४९ ॥
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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