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प्रवचनसार
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चौथो भेद नैनतें निहारिये जु छायादि सो,
हस्तादिसों नाहिं गयौ जात परमान है । पांचमो विभेद जल तेल मिलै छेरै भेर्दै, छठो भूमि भूधरादि संधि न मिलान है ॥ १८ ॥
वर्णभेद-दोहा। अरुन पीत कारो हरो, सेत वरन ये पंच । . इनके अंतरके विपैं, भेद अनंते संच ॥ १९॥
रसभेद । खाटा मीठा चिरपिग, करुआ और कपाय । पांच मेद रसके कहे, तासु भेद बहु भाय ॥२०॥
गंधभेद । गंध दोय परकार है, प्रथम सुगंध पुनीत । दुतिय भेद दुरगंध है, यो समुझो उर मीत ॥२१॥
स्पर्शभेद । तपत शीत हरुवो गरू, नग्म कठोर कहाय । रुच्छ चीकनो फरसके, आठ मेद दरसाय ॥ २२ ॥
प्रश्न-चौपाई। पुदगलके गुन वरने जिते । इंद्रीगम्य कहे तुम तिते ॥ तहां होत शंका मनमाहिं । सुनिये कहों वेदकी छाहि ॥ २३ ॥ परमानू अति सूच्छिम भना | कारमानकी पुनि वरगना ॥ तिनमें चारों गुन वसैं । क्यों नहिं इन्द्री ग्राहै तिसै ॥ २४ ॥