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________________ १२० ] . कविवर वृन्दावन विरचित जो दरव अमूरतवंत है, तासु अमूरत गुन लसत । सो ज्ञान आतंद्रीके वि., प्रतिबिंबित जुगपत बसत ॥ १३ ॥ (६) गाथा-१३२ मूर्त पुद्गल द्रव्यका गुण है। मतगयन्द । पुग्गलदर्ववि0 गुन चार, सदां निरधार विराजि रहे हैं । वन तथा रस गंध 'सपर्स, सुभाविक संग अभंग लहे हैं ।। पर्मअनू अति सूच्छिमतें, पृथिवी परजत समस्त गहे हैं । और जु शब्द सो पुग्गलकी, परजाय विचित्त अनित्त कहे हैं। षट्प्रकार पुद्गल वर्णन-दोहा। षटप्रकार पुदगल कहे, सुनो तासुके मेद । जथा भनी सिद्धांतमें, संशयभाव विछेद ॥ १५॥ सूच्छिम सूच्छिम प्रथम है, सूच्छिम दूजो भेद ।। सूक्ष्मथूल तीजो कह्यौ, थूलसूक्ष्म है वेद ॥ १६ ॥ थूल पंचों जानिये, थूलथूल षट एम। अब इनको लच्छन - सुनो, श्रुति मथि भाषत जेम ॥ १७ ॥ मनहरण । प्रथम विभेद परमानू परमान मान, कारमानवर्गना दुतीय सरधान है। नैन नाहिं गहैं चार इंद्री जाहि गहैं सोई, तीजो भद विषके विवशतें निदान है ॥ १ स्पर्श । २. परमाणु । ३. चौथा ।
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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