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________________ १०० ] कविवर वृन्दावन विरचित जैसे वस्त्र द्रव्य सेत गुनको धेरै है आपु, ____ जदपि प्रदेश एक तदपि विभेद है । वम्को तो बोध फरसादि इन्द्रीहनें होत, पै सुपेद गुन नैन द्वाहीत वेद है ॥ तैं सुपेद गुन जुदो जो न माने तो, ____ फरस आदि इंद्री क्यों न जानत सुपेद है । । दर्व गुनमें हैं भेद संज्ञालच्छनत, ____ नाना भाँति साध स्यादवादी ही अखेद है ॥५७ ॥ दोहा । जा दरववि सुगुरु, ज्यों प्रदेश नहिं भेद । । स्वरूपहूके विपैं, कीजे मेद निखेद ।। ५८ ॥ छप्पय । सत्ता दरववि. विभेद, कहु क्यों न मानिये । दरववि, गुनगन अनंत, थिति पृथक जानिये ॥ निजाधार है दरव, विविध परजायवंत है । गुनपरजै सब जुदे-जुदे, जामें वसंत है ॥ औं सत्ता दरवाधीन है, तासुमाहिं नहिं अपर गुन । है एक विशेषन दरवको, तातै भेद अवश्य सुन ॥५६ ॥ (१५) गाथा-१०७ अतद्भावको उदाहरण द्वारा समझाते हैं। सत्ता तीन प्रकार सहित, विस्तार कहा है । दरवसत्त गुनसत्त, सत्त परजाय गहा है ॥ जो तीनोंके माहिं, परस्पर भेद विराजै । सोई है अन्यत्व भेद, इमि जिन धुनि गाजै ॥
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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