________________
६०
छेवसुत्ताणि -ऊपर लिखा हुआ अर्थ इस मूल पाठ के अनुसार है। वर्षाकाल में निम्रन्थ या निर्गन्थियां जिस क्षेत्र में रहने का निश्चय करें उसके मध्यवर्ती स्थान से आठों दिशाओं में अढ़ाई-अढ़ाई कोश जाने तथा आने पर पाँच कोश का क्षेत्रावग्रह होता है। ___ हाथ की गीली रेखाएं सूखने में जितना समय लगता है उतने समय को "यथालंदकाल" कहा जाता है।
इस सूत्र का अभिप्राय यह है कि अवग्रह क्षेत्र से बाहर निम्रन्यों और निर्ग्रन्थियों को क्षणभर भी नहीं ठहरना चाहिए।
भिक्षाचर्या-रूपा तृतीया समाचारी सूत्र ६
वासावांसं पज्जोसवियाणं कम्पइ निगंयाण वा, निर्गयोण वा सम्वो समंता सकोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पडिनियत्तए 14/8I
तीसरी भिक्षाचर्या समाचारी वर्षावास रहने वाले निर्गन्य-निर्गन्थियों को एक कोश सहित एक योजन क्षेत्र में चारों और भिक्षाचर्या के लिये जाना एवं लौटकर आना कल्पता है । सूत्र १०
जत्य नई निच्चोयगा निच्चसंदणा नो से कप्पइ सव्वओ समंता सक्कोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पडिणियत्तए।८/१०॥
जहाँ नदी जल से भरी हुई सदा वहती रहती हो वहां निम्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को भिक्षाचर्या के लिए एक कोश सहित एक योजन क्षेत्र में चारों ओर जानाआना नहीं कल्पता है।
सूत्र ११ ___ एरावई कुणालाए 'जत्य चक्किया सिया एगं पायं जले किच्चा, एगं पायं थले किच्चा"एवं णं कप्पइ सव्वमो समंता सक्कोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पडिनियत्तए।
एवं च नो चक्किया।
एवं से नो कप्पइ सबमो समंता सक्कोसं जोयणं भिक्खायरियाए गंतुं पडिनियत्तए ।/१॥