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छेदसुत्ताणि जिस प्रकार गणधरों ने वर्षाकाल का एक मास और वीस रातें व्यतीत होने पर वर्षावास का निश्चय किया।
उसी प्रकार गणधरों के शिष्यों ने भी वर्षाकाल का एक मास और बीस रातें व्यतीत होने पर वर्षावास का निश्चय किया।
जहा गणहरसीसा वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कते वासावासं पज्जोसविति।
तहा णं थेरा वि वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कते वासावासं पज्जोसविति ।/४॥
जिस प्रकार गणधरों के शिष्यों ने वर्षाकाल का एक मास और बीस रातें व्यतीत होने पर वर्षावास का निश्चय किया।
उसी प्रकार (उनके पीछे होने वाले) स्थविरों ने भी वर्षाकाल का एक मास और बीस रातें व्यतीत होने पर वर्षावास का निश्चय किया।
सूत्र ५
जहा णं थेरा वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कते वासावासं पज्जोसविति ।
तहा णं जे इमे अज्जत्ताए समणा निग्गंथा विहरंति, ते विय णं वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कते वासावासं पज्जोसविति । ।
जिस प्रकार स्थविरों ने वर्षाकाल का एक मास और बीस रातें व्यतीत होने पर वर्षावास का निश्चय किया,
उसी प्रकार अद्यतन (आजकल) के जो ये श्रमण निर्गन्थ विचरते है, वे भी वर्षाकाल का एक मास और बीस रातें व्यतीत होने पर वर्षावास का निश्चय करते हैं।
जहा णं जे इमे अज्जत्ताए समणा णिग्गंथा वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कते वासावासं पज्जोसविति ।
तहा णं अम्हं पि आयरिया उवज्झाया वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कते वासावासं पज्जोसविति । ८/६।
जिस प्रकार आजकल के ये श्रमण निम्रन्थ वर्षाकाल का एक मास बीस रातें व्यतीत होने पर वर्षावास का निश्चय करते हैं,