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प्रकाशकीय
प्राकृत भारती अकादमी के 23 वें पुष्प के रूप में 'आचारांगचयनिका' का द्वितीय संस्करण पाठकों के कर-कमलों में समर्पित करते हुए प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है । प्राकृत भाषा में रचित श्रागम - साहित्य विशाल है । भारतीय जन-जीवन श्रीर संस्कृति के प्रवाह को समझने के लिए इसका श्रध्ययन महत्त्वपूर्ण है । श्रहिंसा और समता के आधार पर व्यक्ति और समाज के उत्थान के लिए इसका मार्ग-दर्शन अनूठा है । ऐसा साहित्य सर्वसाधारण के लिए सुलभ हो सके, इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर ही दर्शन के विद्वान् डॉ. कमलचन्द सोगाणी ने ग्रागमों की चयनिकाएँ तैयार की हैं । इन चयनिकाओं में से सर्व प्रथम 'आचारांग - चयनिका' प्रकाशित की जा रही है । इसमें श्राचारांग से चयनित सूत्र, उनका मूलानुगामी हिन्दी अनुवाद और उनका व्याकरणिक- विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है । इस तरह पाठकों को विभिन्न प्रकार से इसका लाभ मिल सकेगा । शीघ्र ही उत्तराध्ययन- चयनिका श्रीर दशवेकालिक चयनिका प्राकृत भारती से प्रकाशित होगी । सम्भवतया श्रागम-चयनिकाओं का अध्ययन बृहदाकार श्रागमों के अध्ययन के प्रति रुचि जागृत कर सकेगा । प्राकृत भारती प्रकादमी का विश्वास है कि श्रागमों के अध्ययन को मुलभ बनाने से व्यक्ति में सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति निष्ठा उत्पन्न हो सकेगी और समाज में एक नयी चेतना का उदय हो सकेगा ।
अकादमी के संयुक्त सचिव एवं निदेशक तथा जैन विद्या के प्रकांड विद्वान् महोपाध्याय श्री विनयसागरजी के ग्रामारी हैं, जिनके सतत प्रयत्न से यह पुस्तक शोभन रूप में प्रकाशित हो रही है ।
प्रूफ संशोधन के लिए डॉ. सुषमा गांग एवं पुस्तक की सुन्दर छपाई के लिए कादमी एम. एल. प्रिण्टर्स, जोधपुर के प्रति धन्यवाद ज्ञापन करता है ।
देवेन्द्रराज मेहता सचिव
राजरूप टांक
अध्यक्ष