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पूजा (पाने) के लिए, (भावी) जन्म ( की उधेड़-बुन) के कारण, (वर्तमान में ) मरण - (भय) के कारण तथा मोक्ष (परम शांति) के लिए (श्रीर) दुःखों को दूर हटाने के लिए स्वयं ही जलकायिक जीव- समूह की हिंसा करता है या दूसरों के द्वारा जलकायिक जीव- समूह की हिंसा करवाता है या जलकायिक जीव- समूह की हिंसा करते हुए ( करने वाले ) दूसरों का अनुमोदन करता है । वह (हिंसा - कार्य) उस (मनुष्य) के ग्रहित के लिए (होता है), वह ( हिंसा - कार्य ) उसके लिए श्रध्यात्महीन बने रहने का ( कारण) (होता है ) ।
10. ( यह दुःख की बात है कि ) वह (कोई मनुष्य ) इस ही (वर्तमान) जीवन ( की रक्षा) के लिए, प्रशंसा, आदर तथा पूजा (पाने) के लिए (भावी ) जन्म ( की उधेड़-बुन) के काररण, (वर्तमान में) मरण- (भय) के कारण तथा मोक्ष ( परम शान्ति) के लिए (और) दुःखों को दूर हटाने के लिए स्वयं ही अग्निकायिक जीव- समूह की हिंसा करता है या दूसरों के द्वारा अग्निकायिक जीव-समूह की हिंसा करवाता है या अग्निकायिक जीव- समूह की हिंसा करते हुए ( करने वाले) दूसरों का अनुमोदन करता है । वह (हिंसा - कार्य) उस (मनुष्य) के हित के लिए ( होता है), वह ( हिंसा - कार्य ) उसके लिए ग्रध्यात्महीन बने रहने का (कारण) (होता है) ।
11. ( यह दुःख की बात है कि ) वह (कोई मनुष्य ) इस ही (वर्तमान) जीवन ( की रक्षा) के लिए, प्रशंसा, आदर तथा पूजा (पाने) के लिए, (भावी) जन्म ( की उधेड़-बुन) के कारण, (वर्तमान में ) मरण - (भय) के कारण तथा मोक्ष (परम शान्ति) के लिए (ौर) दुःखों को दूर हटाने के लिए
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