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एग (एग) 2/1 वि. अप्पाणं (अप्पाण) 2/1 सपेहाए (संपेह-संपेह') संकृ धुणे (धुण) विधि 2/1 सक सरीरं (सरीर) 2/1 फसेहि (कस) विधि 2/1 सक जरेहि (जर) विधि 2/1 अक अप्पाएं (अप्पाण) 21 जहा (अ)=जैसे जुम्नाई (जुन्न) 2/1 वि कट्ठाई (कट्ठ) 2/2 हव्यवाहो (हन्ववाह) 1/1 पमत्यति (पमत्य) व 3/1 सक एवं (अ)% इसी प्रकार अत्तसमाहित [(अत्त)-(समाहित) 1/1 वि अणिहे (अणिह) 1/1 वि.
76 इह = यहां । आणाकंखो-हे आज्ञा का इच्छुक । पंडिते= बुद्धिमान् ।
अणिहे = अनासक्त । एगमप्पाणं [(एग)+ (अप्पाणं)] = अनुपम को, आत्मा को । सपेहाए=देखकर । पुणे दूर हटा। सरीरं शरीर को । कसेहि = नियन्त्रित कर । अप्पाणं = अपने को। जरेहि = घुल जा। अप्पाणं =आत्मा में । जहा=जैसे । जुन्नाई - जीर्ण को । कट्ठाई = लकड़ियों को। हव्ववाहो= अग्नि । पमत्यति = नष्ट कर देती है। एवं = इसी प्रकार । अत्तसमाहिते= आत्मा (में), लीन । अणिहे = अनासक्त ।
77 विगिच= (विगिच) विधि 2/1 सक कोहं (कोह) 2/1 अविकपमाणे
(अविकंप) वकृ 1/1 इमं (इम) 2/1 सवि निरुद्धाउयं [(निरुद्ध)+ (आउयं)] [(निरुद्ध) भूकृ अनि-(आउय) 1/1] सपेहाए (सपेहा) संकृ. दुक्खं (दुक्ख) 2/1 च (अ) = और जाण (जाण) विधि 2/1 सक अदुवाऽऽगमेस्सं [(अदुवा)+ (आगमेस्स)] अदुवा = अथवा आगमेस्सं (आगमेस्स) 2/1 वि पुढो (अ) = विभिन्न फासाई (फास) 2/2 च (अ)
=तथा फासे (फास) व 3/1 सक लोयं (लोय) 2/1 च (अ)-और पास (पास) विधि 2/1 सक विष्फंदमाणं (विप्फंद) व 2/1 जे (ज)
1. स=सं। 2. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हम प्राकृत व्याकरण : 3-137)
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[ आचारांग