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[(दुक्खं) + (इणं)] दुक्खं ( दुक्ख ) 1/1 इणं (इम) 2 / 1 सवि वि (अ) - इस प्रकार णच्चा (गच्चा) संकृ अनि एवमाहु [ ( एवं ) + (आहु ) [ एवं (अ) = ऐसा आहु ( चाहु) सू 3 / 1 आर्प सम्मत्तसिणी ( सम्मत्तदंसि ) 1 / 2 ते (त) 1 / 2 सवि सव्वे (सव्व) 1 / 2 सवि पावादिया (पावादिय) 1 / 2 विदुक्खस्स ( दुक्ख 6/1 कुसला ( कुसल ) 1/2 परिष्णमुदाहरति [ ( परिणं) + (उदाहरंति)] परिण्णं (परिण्णा) 2 / 1 उदाहरंति ( उदाहर) व 3 / 2 सक इति (श्र) = इस प्रकार कम्मं (कम्म) 2 / 1 परिण्णाय (परिण्णा) संकृ सव्वसो (अ) + सव्वसो
75 उवेहेणं [(उवेह) + (इ) = समझ, इसको - इस में । वहिता = बाहर । य = ठीक | लोकं = लोक को - लोक में । से = वह । सव्वलोकंसि समस्त, लोक में । जे= जो । केइ = कोई । विष्णू = बुद्धिमान् । श्रणुवियि = बड़ी सावधानी से । पास = समझ । णिक्खित्तदंडा=छोड़ दी गई, हिंसा । जे = जो । केइ = कोई | सत्ता = प्रारणी । पलियं = कर्म - समूह को । चर्यति = दूर हटाते हैं ।
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गरा = मनुष्य । मुतच्चा [ ( मुत) + (श्रच्चा ) ] समाप्त हुई, चित्तवृत्तियाँ । धम्मविदु = अध्यात्म, जानकार । त्ति = और। अंजू = सरल | आरंभजं= हिंसा से उत्पन्न । दुक्ख मिणं [ ( दुक्खं) + (इणं ) ] दुःख, इस को । वि इस प्रकार । णच्चा = जानकर । एवमाह [ ( एवं ) + (ग्रा)] ऐसा, कहा । सम्मत्तदं सिणो: = समत्व दशियों ने । ते = वे । सव्वे = सभी। पावादिया = व्याख्याता | दुक्खस्स = दुःख के । कुसला - कुशल । परिण्णमुदाहरति [ ( परिणं) + (उदाहरति ) ] = ज्ञान को, कथन करते हैं । इति = इस प्रकार । कम्मं = कर्म - समूह को । परिण्णाय = जानकर । सव्वसो = सव प्रकार से ।
76 इह (प्र) = यहाँ श्राणाकंखी [ ( श्रारणा ) - (कंखि ) 8 / 1 वि] पंडिते (पंडित) 8 / 1 वि अणि (रिह) 1 / 1 वि एगमप्पाणं [ (एग ) + (अप्पाणं ) ]
चयनिका ]
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