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पुरिसे = मनुष्य । से=वह । केयणं चलनी को। अरिहइ =दावा
करता है। पूरइत्तए = भरने के लिए । 61 णिस्सारं (रिणस्सार) 2/1 वि पासिय (पास) संकृ णाणी (णाणि) 8/1
उववायं (उववाय) 2/1 चवणं (चवण) 2/1 रगच्चा (णच्चा) संकृ अनि. अणण्णं (अणण्ण) 2/1 वि चर (चर) विधि 2/1 सक माहणे (माहण) 8/1. से (त) 1/1 सवि ण (अ)= न छरणे (छण) व 3/1 सक छणावए (छणाव) प्रे. व 3/1 सक छणंतं (छण) वकृ 2/1 रणाणुजापति [(ण) + (अणुजाणति)] ण (अ)= न. अणुजाणति (अणुजाण) व 3/1 सक.
61 णिस्सारं = निस्सार को । पासिय= देखकर। गाणी = हे ज्ञानी ।
उववायं जन्म को । चवणं = मरण को । पच्चा =जानकर । अणण्णं = समता को। चराचरण कर। माहणे = हे अहिंसक ! से= वह । रण=न । छणे = हिंसा करता है । छणावए = हिंसा कराता है । छणंतं = हिंसा करते हुए को । पाणुजाणति [(ण)+ (अणुजाणति)] न अनुमोदन करता है।
62 कोधादिमाणं [(कोध) + (आदि)+(माणं)] [(कोघ)-(आदि)-(माण)
2/1] हणिया (हण) संकृ य (अ) = सर्वथा वीरे (वीर) 1/1 वि लोभस्स' (लोभ) 6/1 पासे (पास) व 3/1 सक णिरयं (णिरय) 2/1 महंतं (महंत) 2/1 वि तम्हा (अ) = इसलिए हि (अ) ही विरते (विरत) भूकृ 1/1 अनि वधातो (वघ) 5/1 छिदिज्ज (छिद) व 3/1 सक सोतं (सोत) 2/1 लहुभूयगामी [(लहु)-(भूय) संकृ-(गामि) 1/1 वि]
1. कभी कभी द्वितीया विभिक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग
पाया जाता है । हिम प्राकृत व्याकरण (3-134) 2. पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ट 680
चयनिका ]
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