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57 अग्गं प्रतिफल को। चौर । मूलं = प्राधार को। विगिच%निर्णय ___ कर । धीरे-हे धीर । पलिधिदियाएं - छेदन करके । रिएक्कम्मदंसी
कर्मोरहित का देखने वाला। 58 लोगंसि (लोग) 7/1 परमदंशी [(परम)-(दंसि) 1/1 वि विवित्तजीवी
[(विवित्त) वि-(जीवि) 1/1 वि] उवसंते (उवसंत) 1/1 वि समिते (समित) 1/1 वि सहिते (सहित) 1/1 वि सदा (अ)=सदा जते (जत) 1/1 वि कालफंखी [(काल)-(कंखि) 1/1 वि] परिव्वए (परिवा)
व 3/1 तक 58 लोगंसि= लोक में । परमदंसी= परम तत्व को देखने वाला। विवित्तजीवी
=विवेक-युक्त जीने वाला। उवसंते तनाव-मुक्त । समिते=समतावान् । सहिते= कल्याण करने वाला । सदा सदा । जितेजितेन्द्रिय ।
कालकंखी उचित समय को चाहने वाला । परिव्वए-गमन करता है । 59 सच्चंसि (सच्च) 7/1 धिति (घिति) 2/1 कुवह (कुव्व) विधि 2/2
सक एत्योवरए [(एत्थ)+ (उवरए)] एत्य (एत) 7/1. उवरए (उवरण) भूक 1/1 अनि मेहावी (मेहावि) 1/1 वि सव्वं (सब्ब) 2/1 वि पावं
(पाव) 2/1 वि कम्मं (कम्म) 2/1 झोसेति (झोस) व 3/1 सक 59 सच्चंसि =सत्य में । घिति = धारणा (को)। कुव्वह करो । एत्योवरए
[(एत्य)+ (उवरए)] यहाँ पर, ठहरा हुआ । मेहावी = मेघावी । सव्वं =
सव । पावं = पाप को। कम्म= कर्म को। झोसेति= क्षीण कर देता है । 60 अणेगचित्ते [(अणेग)-(चित्त) 2/2] खलु (अ)= सचमुच अयं (इम)
1/1 सवि पुरिसे (पुरिस) 1/1 से (त) 1/1 सवि केयणं (केयण) 211
अरिहइ (अरिह) व 3/1 सक पूरइत्तए (पूर) हेकृ. 60 अणेगचित्ते = अनेक चित्तों को । खलु सचमुच । अयं = यह ।
1. 'अरिह' के साथ हेकृ या कर्म का प्रयोग होता है । 112 ]
[ आचारांग