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________________ भी श्री १०८ चन्द्रसागरजी महाराज के प्रति श्रद्धाञ्जलि (रच० श्री नेमीचन्द पटोरिया B. A. LL. B साहित्यरत्न) हे गुरु महान् ! गौरव-निधान ! चारित्र - शिरोमणि! विज्ञ-प्राण ! हे तापसवर ! शिव सतत-ध्यान ! हे धर्मरत्न ! आदित्य - भान ! आगम-सरिता के विमल तीर, पाखण्ड-जलद के वर-समीर । अपने पथ के एकान्त-वीर, अपने सुध्येय के सुदृढ़-धीर ॥ हे अभयवृत्ति - धारक महान् ! विचरे निर्भय केहरि समान । सम था तुमको मानापमान, सच सच कहते आगम-प्रमाण ।। जब उठी विरोधानल प्रचण्ड, मानो कर देगी खण्ड खण्ड । पाकर श्री गुरु को दृढ़ अखण्ड, तब स्वय हुई वह खण्ड-खण्ड ।। वचनों को इतना पूर्ण किया, जीवन तक उनके हेतु दिया। जब रोगों ने तन क्षीण किया, तब गुरुने ध्यान-समाधि लिया । मैं नत-मस्तक ले मनोद्गार, करता चरणों में नमस्कार । गुरु-चरण-चिह्न-पथ को निहार, चाहूं करलूं कुछ निजोद्धार ।। हे गुरु महान ! गौरव निधान । अर्पित चरणो मे शत-प्रणाम ।। [३७]
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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