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________________ काल रूपी सिंह से व्याप्त संसारवन में कोई रक्षक नहीं है। समाधि मरण वे मृत्यु का आक्रमण होते समय भी अपनी सिह वृत्ति से शोभायमान थे। जब वे वड़वानी में थे और १०४ डिग्री से अधिक ज्वर से उनका शरीर माक्रांत था, उस समय उनकी श्रद्धा, धैर्य, तथा आत्मबल अलौकिक थे। डाक्टरो ने उन्हे देख कर कहा, "महाराज आप जैसे. ज्ञानवान, तेजस्वी साधु का जीवन अनमोल निधि है।" हम इंजेक्शन देकर आपको रोग मुक्त कर सकते है।" उन्होने उत्तर दिया, "हमारा अपने जीवन के प्रति कोई मोह नही है। हमारा मोह अपने व्रत नियम आदि के निर्दोप रूप से परिपालन में है।" यह कहते हुये उन्होने आंख बन्द करली । वे आत्मस्वरूप में निमग्न हो गये । प्राणो ने शरीर का त्याग कर दिया। उस समय इन्दौर से रावराजा राज्यरत्न सर सेठ हुकम चंद जी ने हमे तार द्वारा समाचार दिया था, कि वे अनेक प्रभावशाली लोगो को साथ लेकर महाराज के देह सस्कार के अवसर पर पहच. गये थे। प्रभाव दर्शन आचार्य चंद्र सागर महाराज के जीवन की झलक उनके सच्चे भक्त और नियो में दिखाई पड़ती है । आर्यिका इन्दु मती माता जी, सुपार्श्व मती माता जी के सघ में उक्त साधुराज का पुण्य प्रभाव तथा पवित्र श्रद्धा का दर्शन होता है। उन दिवंगत महर्षि के चरणो को मेरा शतशः बन्दन है। MER [३]
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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