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________________ सम्यग्दर्शन जीव का परम हितकारी है। अनुभय वचनेन युताः चत्वारःपंचाचे तु पंचदश योगाः। त्रसकाये विज्ञयाः पंचदश योगेषु निजैकः ॥२३॥ भावार्थ-विकल त्रय के औदारिक १ मिश्र १ कार्माण १ अनुभय वचन योग १ ऐसे चार योग प्रत्येक दो इन्द्रि-तीन इन्द्रि-चार इन्द्रि जीवों के होते है। पंचेन्द्रिय के-पंद्रह योग होते हैं नाना जोव अपेक्षा से । त्रसकाय में सामान्य से पंद्रह योग होते हैं, इन्द्रिप मार्गरणा, काय मार्गणा दो हुए, पंद्रह योगों में अपने-अपने योग होते है । ॥ इति योग मार्गणा ॥ आहारकद्विक रहिताः त्रयोदश स्त्री नपुंसकयोः पुसि। क्रोध चतुष्के सर्वे अज्ञानद्रिके त्रयोदश भवन्ति ॥२४॥ भावार्थ-स्त्री वेद में-नपुंसक वेद में-आहारक तथा आहारक मिश्र ये दो छोड़ शेष तेरह योग होते हैं पुरुष वेद में सर्व पंद्रह योग हैं ॥ इति वेद मार्गणा ॥ क्रोधमान-माया-लोभ-चारों कषायों में पंद्रह योग हैं ॥ इति कषाय मार्गणा ॥ कुमति-कुश्रुतिअज्ञान में-आहारक दोनों छोड़ तेरह योग होते हैं । मिश्रद्विकाहारद्विक कार्मणविहीना भवन्ति विभंगे। दश सर्वे ज्ञानत्रिके मनः पर्यये प्रथमनवयोगाः ॥२५॥ भावार्थ-कुअवधि-विभंग ज्ञान में औदारिक मिश्र १ वेक्रियक मिश्र १ आहारक २ नो, कार्माण १ ये ५ रहित शेष दश योग होते हैं। सुमति-श्रुति-अवधि तीनों शानों में पंद्रह योग हैं, मनःपर्यय ज्ञान में आठौ मन वचन और एक औदारिक काय योग कुल नव होते हैं। औदारिकः तन्मिश्रः कार्मणं सत्यानुभयानां च । मनोवचनानां चतुष्कं केवलज्ञाने सप्त एकादशकं ॥२६॥ भावार्थ-केवलज्ञान में औदारिक १ मिश्र १ सत्य मन १ सत्य वचन १ अनुभय मन १ अनुभय वचन १ कार्माण १ सब सात योग होते हैं, समुद्धात अपेक्षा से। [२२८]
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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