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________________ प्राणी का मरण पुराने कपडे बदलने के समान है। रिक्तपत्रमपि जीर्णमक्षरं शीर्णपत्रमपि कूटलेखनं । सुप्रशस्तमपि पद्यमीदृशं ह्यामनंति न तु नीतिवेदिनः ॥६॥ पारावार पुरर्तुशैल सलिल क्रीडा कुमारोदयो। धानाल्हादविवाह भोगविजय श्रीचन्द्रसूर्योदयः । मंत्रालोचन नायकाभ्युदय युकपट्टाभिषेकोत्सवाः । शास्त्रावर्णनया पुराणशकुने पुण्यानुबंधोदयः ॥१०॥ धर्मो राजा तथा शाखा प्रजा चेति चतुविधा। जेष्ठ शुक्लस्य पंचम्यां शलाका दृश्यते बुधः ॥११॥ धर्मः श्वेत. १. राजा रक्तः २. शाखा हरिता ३. प्रजा पीता ४. ॥ मंत्रः॥ ॐ रों को श्री ह्रीं क्लीं ब्लें झाँ श्री श्री सरस्वति मरालवाहने वीणापुस्तकमालापन मंडित चतुर्भुजे मौक्तिक हारावलिराजितोरोज सरोज कुड्मल युगले वद वद वाग्वादिनि सर्वजन संशयापहारिणि श्रीमद्भारति देवि ! तुभ्यं नमोस्तु । ॥ इति श्री सरस्वती मत्रः ॥ इति शलाका वर्णनं संपूर्ण समाप्तं प्रभावना जैसे होवे वैसे भाई, दूर हटा जग का अज्ञान । भूल कर प्रकाश करदे विनाश तम, फैला दे शुचि सच्चा ज्ञान । तन मन धन सर्वस्व भले ही, तेरा इसमें लग जावे । वज्रकुमार मुनीन्द्र सदृश, तू तब प्रभावना कर पावे ॥ सम्यग्दर्शन सुखकारी है, भव सन्तति इससे मिटती। अङ्गहीन यदि हो इसमें तो, शक्ति नहीं इतनी रहती ॥ र विष की व्यथा मिटा दे ऐसी, शक्ति मंत्र में है प्रियवर । हे अक्षर मात्रा हीन हुए से, मंत्र नही रहता सुखकर ॥ [२११]
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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