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________________ ज्ञानावरणी आदि कर्म बादल के दूर हो जाने से केवल ज्ञान रूपी सूर्य का प्रकाश प्रगट होता है। ॥चार गती में ५७ आश्रव ॥ वैक्रियक दोयबिना नर पचपन द्वार, आहारक दोयबिना त्रेपन त्रियंच है।। औदारीक दोय, दोय आहारक, पंड वेद पाँचवीना देवनी के बावन को संच है ।। आहारक दोय, दोय औदारिक, नरनारि, छहोवीना इक्यावन नर्क में प्रपंच है। चारौ गति माहि ऐसे आश्रवसरूप जानि नमौ सिद्ध भगवान जहा नाहि रंच है ॥८१॥ ॥चार गती में १२० बंध ।। औदारीक दोय, आहारक दोय, नर्क देवगति आयु अनुपूरवि दसौ बखानि है । विकलत्र सूभम साधारण अपर्याप्त सोलैवीन सतचार देव के प्रवानि है ।। एकेंद्रि थावर आताप तीन प्रकृति वीना नर्क एकसत एक, बंध जोग ठानि है । तीर्थकर आहारकवीना पशु सो सत्तर, नरके विसासौ सवनासो शीव थानि है ॥२॥ इकसौ सतरह, येक येकसौ, चौहत्तरि सत्तहरि माना । सतसठ, तेसठ, उनसठ, ठावरण, बाईस, सत्तरै दसमे थाना ।। ग्यारम बारम तेरम साता येक बंध नहि अंत निदाना । सब गुण स्थानक बंध प्रकृतो, इस निहचै आप अबंध पिछाना ॥३॥ ॥ उदय १२२ गुण ॥ इकसौ सतर, एकसौ ग्यारे, सो अरुचौसो, सत्तासीय ।। इक्यासी छहत्तरि, बहत्तरि, छयासठ, अरु साठ उदीय ॥ उनसठ, सत्तावन, बियालिस, प्रकृती बार उदय है जीय ॥ चौदे गुण स्थानक की रचना उदं भिन्न तूं सिद्ध सुकीय ॥४॥ ॥ उदीरणा॥ इकसौ सतर, इकसौ ग्यार, सोचौ सतासि जान । इक्यासी, तिहत्तरि, उनहत्तरि, तेसठि, सत्तावन, मान ॥ छप्पन, चौवन, उनतालिस, तेरमे अंत नहीं परवान ॥ यह उदीरणा चौदे थानक करै ज्ञानबल सो सुज्ञान ॥५॥ ॥१४८ सत्ता वर्णन ॥ पहले सो अठताल, दूजे में सो पैताल, तीजै माहि सो सैताल, चौथे अठतालसो॥ पांचे गून सो सैताल, छट्टै सातै आठ नौमें दशमें ग्यारमें उपशम है छीयालसो । आठे नौमे सो अठतीस, दशे इकसो दोय, बार में इकसोईक आगे पंद्रे टालसो॥ चौदे तेरमें पीचासी सत्तानाश अविनाशि नमोलोक घन उर्ध्व राजु है सैतालसो ॥६॥ [१८]
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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