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________________ नाम म्पो रोग को दूर करने के लिये माम ध्यान ही परमौषधि है । अठाईस अठाईस बाईस बाईस बीस बार में थान ॥ तेरे चौदे अंत में स्थानक पंचभाव सिद्धाले जान ।। सम्यक् ज्ञान दरस बल जीवित निहचे सो तूं आप पिछान ॥७॥ पहले मिथ्यात अभव्य, दूसरे विभंग तीन, लेश्या तीन नकं अवत देव चार में ।। पशु पाचं, लेश्या दोय सात लोभ दसैलग, क्रोध मान माया तोन वेदनौ विचार में। सेस तेरे, नरभव्व जीवित असिद्ध चौदे पंचलब्धि, अज्ञान चख अचख वार में । चवतोसो भाव कहे चौदे गूण थानक में, वे उनीस बारहम हो अविकार में ॥७६॥ ॥ १२ गुण घटे १६ ॥ उपशम चौथे ग्यारे, वेदक चौथे सात, क्षायक चौथे चोदहै, देशविरत पांचमे । ज्ञान तीन तीजै बार, मन पर्यय छट्टे वारे, चारीतसराग, छट्टे दसै को साचमे ।। अवधि तो वार, उपशम चारोत ग्यारेहि, क्षायिक चारीत बार चोदे कर्म वाचमे ॥ पंच लब्धि क्षायोक दर्श ज्ञान तेरे चौदे नमो भाव उनइस छूट नरक आवमै ॥७७॥ ॥ ४ गती ५३ ॥ साततो स्वभाव पंच भाव सिद्ध बंदत हो, तीनों गति वीना नरक पचास दोस है ।। क्षायक आठवीना, मन परज, चारित है दोय ग्यारे वीना पशु ऊनतालीस है। शुभ लेश्या तीन अर नर नारि वेद देशवत छही भाववीना. नारक तेतीस है। हीन तीन लेश्या खंड वेदचारो भाववोना, शुभ लेश्या नरनारि सूरि के चौतीस है ।।७८॥ ॥ आनन ॥ पचपन पचास तेतालिस छियालिस सेतीस चोवीस जाना ।। बाईस सोल दस अरु नव नव सात अंत बखाना ।। चौदे गुण थानक में इह विधि आश्रव द्वार कहै भगवाना ।। मूल चार उत्तर सत्तावन नाश करौ धरि संवरजाना ॥७६।। पहिले पांच मिथ्यात, दूजे अनंतानु वंघि, ग्यारह अविरत प्रत्याख्यानि पांच गहै । वक्रियक औ अप्रत्याख्यानि सवध चौथे, आहारक छट्टोपट हास्य आठ लोल है ।। तीन वेद तीन संज्वलन नौमे, लोभ दस असत उभे वचन मन बारहे कहे ।। सत अनुभव वच मन औदारीक तेरे मिश्र कारमान चारि गूणस्याने सदह ।।८०॥
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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