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________________ तपस्वियो को सगति से ध्यान अग्नि प्रज्वलित होती है। www आठ करम, गुण आठ भेद, लेश्या षट् जाने । पंच, पंच व्रत, समित चरितगति ज्ञान बखाने ।। सरधे प्रतीत रुचि मन धरै मुकतिमूल समकित यही । पद नमो जोर कर सीसधर धन्य सर्वज्ञ यह विधि कही ॥४॥ काल, ६ सहनन, १४ गुण स्थान, वर्णन प्रथम द्वितिय अरु तृतिय काल में पहिला जानों। चौथे षट संहनन पंच में तीन बखानों ।। करम भूमि तिय तीन, एक छट्ट के माहीं। बिकल चतुष्कयेक इन्द्रिक नाहीं ॥ षट कहे सात गुण, स्थान लग, तीन अग्यारेलौ लहै । इक क्षपक श्रेणी गुण ते रहै, धन जिन वाणी में कहे ॥ ॥ सह० गती ॥ छहौ तिसरे जाई, पांच चौथे, पंचमलग। चारि संहनन छटे इक सात नरक मग ॥ छहौ आठमें स्वर्ग, पंच बारस सुर जावे । चारि सोलमें लोक तीन नौ ग्रेवेक पावै ॥ दो संहनन नउनउत्तरे, इक पंच पंचोत्तरे। इक चरम शरीरी शिवलहै, बंदी जैन बचन खरे ।।६।। १६६ पुण्य पुरुप चौबीसौ जिनराय पाय वंदौ सुख दायक । काम देव चौवीस ईश सुमरो शिव नायक ॥ भरतआदि चक्रश दुदश, दुहसुर नरक स्वामी। नारद पद्म मुरारि और प्रति हरि जगनामी ॥ जिनमात तात कुलकर पुरुष शंकर उत्तम जिय घरो। कुछ तदभव कुछ भव धरत मुकति रूप वंदन करी ॥७॥ प्रसिद्ध पुरुप ॥ वंदी पारसनाथ, नमो बलि रामचन्द्र वर । कामदेव हनुमंत, प्रगट रावण मानीनर । [१३]
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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