________________
मिथ्यात्व का वेदन करने वाले को आत्म हितकारी उपदेश कर प्रतीत होता है।
दशाध्याये परिच्छन्ने तत्वार्थे पठिते सति । फलं स्यादुपवासस्य भाषितं मुनि पुंगवैः ॥४॥
तत्वार्थ सूत्रकरिं गद्धपिच्छो पलक्षितम् ।
वंदे गणीन्द्र संजात मुमास्वामि मुनीश्वरम् ॥५॥ जं सक्कइ तं किरई, ज्जं चण सक्केइ तंच सद्दहणं । सदहमाणो जीवो पावई, अजरामरं ठाणं ॥६॥
तव यरणं वयधरणं, संयमसरणं च जीवदयाकरणं ।
__अंते समाहिमरणं, चउगई दुक्खं णिवारेई ॥ ७॥ पढम घउक्के पढमं पंचमे पुद्गल ज्ञानं । छह सप्तमे सु आश्रवः अमे तह बंधणायव्वा ॥ ८ ॥
णवमे संवर निज्जरा, दसमे मोकं पोहाणेइ ॥ इह सत्त तत्त्व भणियं, जिण परिणतं वह सुत्ते॥६॥ - तत्त्वार्थ सिद्धात लघु सूत्र सम्पूर्णम् -
5 जिन बिम्ब निर्मापणं विधि भी वीरं देव देवाच्यं, स्वर्ग मोक्ष सुख प्रदं । प्रणम्य बिम्ब निर्माण, पद्यार्थान्सं लिखाम्यहम् ॥१॥ अथ विम्बं जिनेन्द्रस्य, कर्त्तव्यं लक्षणान्वितम् ।
ऋज्वायत सुसंस्थानं, तरुणांगं विगम्बरम् ॥२॥ अर्थ-जिनेन्द्र भगवान का प्रतिबिम्ब सरल लम्बा सुन्दर समचतुरस्त्र संस्थान
तरुण अवस्थाधारो नग्न जात लिंग पारी सर्वलक्षण संयुक्त करणां योग्य है ॥२॥
श्री वत्स भूषितोर एकं, जानु प्राप्त कराग्न जं।
निजांगुल प्रमाणेन, साष्टांगुल शतायुतम् ॥३॥ अर्थ-श्री वत्स चिन्ह करि भूषित है उर स्थल जाका और गोडा पयंत लम्बाय
मान है भुजा जाकी ऐसा निनांगुल के प्रमाण से १०८ भाग प्रमाण जिन बिम्ब करणा चाहिये ॥३॥
[१५१]