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________________ आचार्य कल्प दिगम्बर जैन मुनि गुरुवर्य श्री चन्द्रसागर स्तुतिः -आर्यिका श्री १०५ सुपार्श्वमती माताजी द्वारा रचितय शान्ति सागर गृरोश्चरणारविन्दे, ____जग्राह सर्व सुखदा हि जिनेन्द्र दोक्षां । राजाधिराज मुर सेवित पाद पद्म, त चन्द्र सागर गुरुं हृदि भावयामि ।।१।। गुप्तित्रय समिति युक्त महाव्रतानि, ___धृत्वा त्रयोदश विधं मुनि रूप धर्म । कर्मारि-भेदनविधी निशितं कुठार, श्री चन्द्रसागर गुरुं प्रणमामि भक्त्या ॥२॥ संसार ताप रहिता: शिवसौख्य युक्ता, भक्ता भवति तव दर्शन मात्र तस्तु । ससार तापहननाय दयादियुक्तं, श्री चन्द्रसागर गुरुं प्रणमामि भक्त्या ॥३॥ मित्थ्यांधकार कलिते मुमरुप्रदेणे, भव्यान् प्रवोध्य मदमोह कपाय युक्तान् । धर्म समादिशब्धोद्धरणाय मत्यं, श्री चन्द्रसागर गुरुं प्रणमामि भक्त्या ॥४॥
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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