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प्रकाशक का संक्षिप्त परिचय
___ श्री मिश्रीलाल जी सादगी पसन्द, निरभिमानी, सरल स्वभावी, धार्मिक कार्यों में अग्रणी, परम गुरुभक्त तथा उदार चित्त से पूर्ण गौहाटी जैन समाज रूपी सुरभित उद्यान के एक आकर्षक पुष्प हैं । ____ आपका जन्म राजस्थान के चुरू जिले में स्थित लालगढ़ नाम के कस्बे में वि० संवत् १६८१ में स्वर्गीय श्री जेठमल जी वाकलीवाल के घर हुआ था। • आपके पिता श्री जेठमल जी बड़े धर्म परायण व्यक्ति थे । धार्मिक कार्यों में सदैव रुचि लेते थे। समाज सेवा में सदैव अग्रणी रहते थे । तीर्थ यात्रा, दान, साधु सत्कार के प्रसगों में सदा आगे बढ़कर कार्य करते थे। योग्य पिता के योग्य पुत्र श्री मिश्रीलाल जी भी अपने पिता के पद चिह्नों पर चलकर आज समाज की सेवा में तत्पर हैं।
आपके जीवन की एक उल्लेखनीय एवं चिरस्मरणीय बात यह है कि किशनगंज (बिहार) से पूज्य आयिका श्री १०५ इन्दुमति जी, आर्यिका श्री १०५ सुपार्श्वमती जी, आर्यिका श्री १०५ विद्यामती जी, एवं आर्यिका श्री १०५ सुप्रभामती जी के आयिका संघ को जगह जगह बिहार, बंगाल, और आसाम में पद विहार कराते हुये अद्वितीय धर्म प्रभावना के साथ आप और आपकी दानशीला धर्मपत्नी श्रीमती अमरावदेवी वाकलीवाल ने संघ के दुर्लभ दर्शनों का आसाम वासियों को सुयोग प्रदान किया है । इस गुरुतर कार्य की सफलता के उपलक्ष मे आपने इस ग्रन्थ का प्रकाशन कराया है। आपका यह कार्य इतना अनुपम एव अनुकरणीय रहा है जो कि जैन इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा। संघ की गुरूभक्ति से उल्लसित होकर तथा अपनी चंचला लक्ष्मी का सद्उपयोग करते हुये, भव्य जीवों को जैन धर्म के पवित्र मार्ग का अनुसरण करने में सहायक यह ग्रन्थ स्वाध्याय हेतु भेंट करके आपने अपनी धार्मिक भावना का परिचय दिया है। ।
__आपकी धर्म पत्नी श्रीमती अमरावदेवी वाकलीलाल को वैयावृत्ति पूर्ण भावनाओं का जितना उल्लेख किया जाय उतना थोड़ा है। आपने शीत उष्ण तथा मार्ग की असुविधाओं और कष्टों की कोई परवाह न करते हुये पूज्य आयिका सघ की वैयावृत्ति में जिस मनोयोग से अपने चित्त को लगाये रखा है वह सर्वथा प्रशंसनीय है। ऐसी महिला रत्नों से समाज गौरवान्वित होता है ।
-जिनेन्द्र प्रकाश जैन सम्पादक करुणा दीप एटा