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________________ हम भौतिकवाद की नरसा के कारण मागते हुये भी सो रहे हैं। विनेष्ट जंतोः शरणं रणं रणं । क्षमादितो यः कमळं मठं महं॥ मरामराराम क्रमं क्रमं क्रमं । पार्श्व फणे रामगिरौ गिरौ गिरौ ॥३॥ अज्ञान सत्काम लता लता लता। यदीय सद्भावनता नता नता॥ निर्वाण सौख्यं सुगता गता गता। पार्श्व फणे रामगिरौ गिरौ गिरौ ॥४॥ विवादिता शेषविधि विधी विधी । बभूव सव्वहरी हरी हरी ॥ विज्ञान सज्ञान हरो हरो हरो। पार्श्व फणे रामगिरौ गिरौ गिरौ ॥५॥ यद्विश्व लोकैक गुरु गुरु गुरुं । विराजिता येन वरं वरं वरं ॥ तमाल नीलांग भरं भरं भरं। पार्श्व फणे रामगिरौ गिरौ गिरौ ॥६॥ संरक्षितो दिग्भुवनं वनं वनं । विराजिता येषु दिवै दिवै दिवः॥ पाद द्वये नूत सुरासुराः सुराः । पार्श्व फणे रामगिरौ गिरौ गिरौ ॥७॥ रराज नित्यं सकला कला कला। ममारतृष्णो वृजिनो जिनो जिनो॥ संहार पूज्यं वृषभा सभा सभा। पार्श्व फणे रामगिरौ गिरी गिरौ ॥८॥ तर्के व्याकरणे च नाटक चये काव्याकुले कौशले । विख्यातो भुवि पद्मनंदि मुनिपस्तत्वस्य कोषं निधिः॥ गंभिरं यमकाष्टकं पठति यः संस्तूयसा लभ्यते । श्री पद्मप्रभदेव निर्मितमिदं स्तोत्रं जगन्मंगलं ॥६॥ -----समाप्तम्--- * * ** * अकलंक स्तोत्र । त्रैलोक्यं सकलं त्रिकाल विषयं सालोकमा लोकितम् । साक्षाय न यथा स्वयं करतले रेखात्रयं सांगुलिम् ॥ रागद्वेष भया मयान्तक जरा लोलत्व लोभादयो। नालं यत्पदलंघनाय स महादेवो मया वंद्यते ॥१॥ दग्धं येन पुर त्रयं शरभवा तीवाचिषा वह्निना। यो वा नृत्यति मत्तवप्तितृवने यस्यात्मजोवागुहः ।। सोऽयं किं मम शंकरो भय तृषारोषाति मोहक्षयं । कृत्वा यः स तु सर्व वित्तनु भृतां क्षेमंकरः शंकर ॥२॥ [१७]
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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