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________________ अशान्ति, मौर भय की जन्मदात्री है। यदीया वाग्गंगा विविधनयकल्लोलविमला, बृहज्जानांभोभिर्जगति जनता यास्नपयति । इदानीमप्येषा बुधजनमरालः परिचिता, महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे (नः) ॥६॥ अनिर्वारो कस्त्रिभुवनजयी काम सुभटः। कुमारावस्थायामपि निजवलायन विजितः। स्फुरन्नित्यानंदप्रशमपदराज्याय स जिनः, महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे (नः) ॥७॥ महामोहांतक प्रशमनपराकस्मिकभिषग, निरापेक्षो बंधुविदितमहिमा मंगलकरः । शरण्यः साधूनां भवभयभृतामुत्तमगुणो, महावीरस्वामी नयनपथगामी भवतु मे (नः) ॥८॥ महावीराष्टकं स्तोत्रं भक्तया भागेन्दुना कृतं, यः पठेच्छणुयाच्चापि स याति परमां गति ॥६॥ --समाप्तम्--- अथ श्री सरस्वती स्तोत्रं 40 चंद्रावककोटिघटितोज्ज्वल दिव्यमूर्ते, शुभ्र वस्त्रेश्रोचन्द्रिकाकलितनिर्मलसुप्रभासी। कामात्यदायि कलहंस समाधिरूढे, वागीश्वरि प्रतिदिनं मम रक्ष देवि ॥१॥ देवा सुरेन्द्र नत मौलि मणि प्ररोचिः, श्री मञ्जरीनिविड रञ्जितपाद पर्छ। नीलालके प्रमदहस्त समान याने, वागीश्वरि प्रतिदिनं मम रक्ष देवि ॥२॥ केयूर हार मणि कुण्डल मुद्रिकाद्य, सर्वागभूषण नरेन्द्र मुनीन्द्र वन्य। नाना सु रत्न वर निर्मल मौलि युक्त, वागीश्वरि प्रतिदिनं मम रक्ष देवि ॥३॥ मंजीर कोत्कनक कंकण किंकणीना, तेषां सुझंकृतरवेण विराजमाने । सद्धर्म वारि निधि संतत वर्द्धमाने, वागीश्वरि प्रतिदिनं मम रक्ष देवि ॥४॥ कंकेलि पल्लव विनिन्दित पाणि युग्मे, पद्मासने दिवस पद्म समान वन्के । जैनेन्द्र वक्र भव दिव्य समस्त भाषे, वागीश्वरि प्रति दिनं मम रक्ष देवि ॥५॥ [१५]
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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