________________
इस कलियुग के मानव ने पक्षियों के समान नभ में उड़ना सीख लिया है, मीन के समान
१६ स्वयंभू २० अनुवृत्तिक २१ जय २२ विमल २३ देवपाल २४ अनन्तवीर्याश्चेतिभविष्यत्कालसम्बन्धिचतुर्विशतितीर्थकरेभ्यो नमो नमः॥
विदेहक्षेत्र के तीर्थंकराः । १ श्री सीमंधर १ युगमंधर ३ बाहु ४ सुबाहु ५ सुजात ६ स्वयंप्रभ ७ वृशभानन ८ अनंतवीर्य ६ सूरप्रभ १० विशालकीति ११ बजधर १२ चंद्रानन १३ चन्द्रबाहु १४ भुजंगम १५ ईश्वर १६ नेमप्रभ १७ वीरसेन १८ महाभद्र १६ देवयश २० अजितवीर्याश्चेति विद्यमान महाविदेहोत्रेविंशतितीर्थकरेभ्यो नमो नमः ॥
----इति नमस्कारमन्त्रा समाप्ता:----
6 श्री पंच परमेष्टी स्तोत्रम् 20 श्री शतेन्द्र योगि वृन्द वंद्य पाद पंकज, शाश्वतेद्ध बोध दृष्टि वीर सौख्य भासुरम् । सु प्रशस्त योग दग्ध घाति कर्म वैरिणं, भू प्रशस्य नाथ महंदीश म→याम्यहं ॥१॥
अष्ट कर्म विप्र मुक्तमष्ट सद्गुणोज्वलं, दुष्ट भाव दुःख दूर मष्टमीदराग्रज । स्पष्ट दृष्ट लोका लोकमच्युतं तुलोजितं,
तोषयामि निष्ट तार्थ भिद्ध सिद्ध संचयम् ॥२॥ आचरन्ति चारु पञ्च वृत्त कानिये स्वयं, चारु यत्यनुग्रहोरु बुद्धितः समाश्रितान् । शूरमार मल्लमान मर्दकान्गुणो ज्वलां, स्तांच्छरण्य मंगलोत्तमान्य जामि शिक्षकान ॥३॥
द्वादशांग सांग बाह्य शास्त्र वाद्धिपारगान्, साधुवाद वज्र भिन्न मत्त वादि भूधराम । साद्य नाद्य नन्त शान्त मोक्ष मार्ग देश का,
नादरेण तान्नमामि पाठकान्गुणाम्बुधीन् ॥४॥ [१०]