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________________ पत्र ६३३] विविध पत्र आदि संग्रह-२९याँ वर्ष पुत्रको ) भी रुकना पड़े, उससे तो किसीको भी उत्कृष्ट त्यागरूप मोक्ष-साधनके प्राप्त होनेका संयोग न आने देने जैसा ही होता है। तथा जब किसी किसी उत्तम संस्कारवान पुरुषोंके गृहस्थाश्रमके पहिलेके त्यागसे वंशवृद्धिके रोकनेके विचारको लेते हैं, तो वैसे उत्तम पुरुषके उपदेशसे, अनेक जीव जो मनुष्य आदि प्राणियोंका नाश करते हुए नहीं डरते हैं, वे उपदेश प्राप्त करके वर्तमानमें उस तरहसे मनुष्य आदिका नाश करते हुए क्यों नहीं रुक सकते; तथा शुभवृत्तिके प्राप्त करनेसे फिरसे वे मनुष्यभव क्यों नहीं प्राप्त कर सकते ! और इस रीतिसे तो मनुष्यकी रक्षा और वृद्धि होना ही संभव है । अलौकिक दृष्टिमें तो मनुष्यकी हानि-वृद्धि आदिका विचार मुख्य नहीं है, कल्याण-अकल्याणका ही विचार मुख्य है। जैसे कोई राजा यदि अलौकिक दृष्टि प्राप्त कर ले तो वह अपने मोहसे हजारों प्राणियोंके युद्ध में नाश होनेके हेतुको देखकर, बहुत बार बिना कारण ही वैसे युद्ध न करे, जिससे बहुतसे मनुष्योंका बचाव हो और उससे वंशकी वृद्धि होकर बहुतसे मनुष्य बढ़ जॉय, यह भी विचार क्यों नहीं लिया जा सकता ? इत्यादि अनेक प्रकारसे विचार करनेसे लौकिक दृष्टि दूर होकर अलौकिक दृष्टिसे विचारकी जागृति होगी। ( इत्यादि अनेक कारणोंसे परमार्थ दृष्टिसे जो बोध किया है, वही योग्य मालूम होता है। इस प्रकारके प्रश्नोत्तरोंमें विशेष करके उपयोगको प्रेरित करना कठिन होता है, तो भी संक्षेपमें जो कुछ लिखना बना है उसे उदीरणाकी तरह करके लिखा है।) जबतक बने तबतक ज्ञानी-पुरुषके वचनोंको लौकिक आशयमें न उतारना चाहिये। अथवा अलौकिक दृष्टिसे ही विचार करना योग्य है । और जबतक बने तबतक लौकिक प्रश्नोत्तरमें भी विशेष उपकारके बिना पड़ना योग्य नहीं; वैसे प्रसंगोंसे कितनी ही बार परमार्थ दृष्टिके क्षोभ प्राप्त करने जैसा परिणाम आता है। २. बड़के बड़फल अथवा पीपलकी पीपलीको कुछ उनके वंशकी वृद्धिके करनेके हेतुसे, उनके रक्षणके हेतुसे, उन्हें अभक्ष कहा है, ऐसा नहीं समझना चाहिये । किन्तु उनमें कोमलता होती है, इसलिये उनमें अनंतकायका होना संभव है, तथा उसके बदले दूसरी बहुतसी चीजोंसे निष्पापरूपसे रहा जा सकता है, फिर भी उसीके अंगीकार करनेकी इच्छा रखना, यह वृत्तिकी तुच्छता होती है, इस कारण इन्हें अभक्ष कहा है, यह यथार्थ मालूम होता है। . ३. पानीकी बिन्दुमें असंख्यात जीव है, यह बात ठीक है। किन्तु ऊपर कहे अनुसार जो बड़के बरफल वगैरहके कारण हैं, वे कारण इसमें नहीं हैं, इस कारण उसे अभक्ष नहीं कहा । यद्यपि वैसे पानीके काममें लेनकी भी आज्ञा है, ऐसा नहीं कहा, और उससे भी अमुक पाप होना ही संभव है, ऐसा उपदेश किया है। १. पहिलेक पत्रमें बीजके सचित्त-अचितके संबंधमें समाधान लिखा है, उसे किसी विशेष हेतुसे
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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