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________________ पत्र २६५, २७७ विविध पत्र आदि संग्रह-२५वाँ वर्ष २६५ बम्बई, पौष वदी ३ रवि. १९४८ एक परिनामके न करता दरव दोइ, दोइ परिनाम एक दर्व न धरतु है। एक करतूति दोइ दर्व कबहूँ न करै, दोइ करतूति एक दर्व न करतु है। जीव पुदगल एक खेत-अवगाही दोउ, अपनें अपने रूप कोउ न टरतु है, जड़ परिनामनिको करता है पुदगल; चिदानन्द चेतन सुभाव आचरतु है । ( समयसार-नाटक ) २६६ बम्बई, पौष वदी ९ रवि. १९४८. एक परिनामके न करता दरव दोइ (१) वस्तु अपने स्वरूपमें ही परिणमती है, ऐसा नियम है । जीव जीवरूप परिणमा करता है, और जड़ जड़रूप परिणमा करता है । जीवका मुख्य परिणमन चेतन (ज्ञान ) स्वरूप है और जड़का मुख्य परिणमन जड़त्व स्वरूप है । जीवका जो चेतन परिणाम है वह किसी भी प्रकारसे जड़ होकर नहीं परिणमता, और जड़का जो जड़त्व परिणाम है वह कभी चेतन परिणामसे नहीं परिणमता; ऐसी वस्तुकी मर्यादा है; और चेतन, अचेतन ये दो प्रकारके परिणाम तो अनुभवसिद्ध हैं। उनमेंके एक परिणामको दो द्रव्य मिलकर नहीं कर सकते; अर्थात् जीव और जड़ मिलकर केवल चेतन परिणामसे परिणम नहीं सकते, अथवा केवल अचेतन परिणामसे नहीं परिणम सकते । जीव चेतन परिणामसे परिणमता है और जड़ अचेतन परिणामसे परिणमता है; ऐसी वस्तुस्थिति है; इसलिये जिनभगवान् कहते हैं कि एक परिणामको दो द्रव्य नहीं कर सकते । जो जो द्रव्य है, वह सब अपनी स्थितिमें ही होता है, और अपने स्वभावमें ही परिणमता है। दोय परिनाम एक दर्व न धरतु है इसी तरह एक द्रव्य दो परिणामोंमें भी नहीं परिणम सकता, ऐसी वस्तुस्थिति है । एक जीव द्रव्य चेतन और अचेतन इन दो परिणामोंसे नहीं परिणम सकता, अथवा एक पुद्गल द्रव्य अचतन और चेतन इन दो परिणामोंसे नहीं परिणम सकता; केवल स्वयं अपने ही परिणाममें परिणम सकता है । अचेतन पदार्थमें चेतन परिणाम नहीं होता, और चेतन पदार्थमें अचेतन परिणाम नहीं होता; इसलिये एक द्रव्य दो प्रकारके परिणामोंसे नहीं परिणम सकता, अर्थात् दो परिणामोंको धारण नहीं कर सकता। .. एक करतूति दोइ दर्व कबहूँ न करै इसलिये दो द्रव्य एक क्रियाको कभी भी नहीं करते । दो द्रव्योंका सर्वथा मिल जाना योग्य नहीं है, क्योंकि यदि दो द्रव्योंके मिलनेसे एक द्रव्य उत्पन्न होने लगे तो वस्तु अपने स्वरूपका त्याग
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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