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________________ पत्र २२५, २२६] विविध पत्र आदि संग्रह-२४वाँ वर्ष २६१ २२५ रालज, भाद्र. सुदी ८, १९४७ शुं साधन बाकी रघु ? कैवल्य बीज शु? . यम नियम संजम आप कियो, पुनि त्याग विराग अथाग लह्यो वनवास लियो मुख मौन रह्यो, दृढ़ आसन पन लगाय दियो ॥ १॥ मनपौननिरोध स्वबोध कियो, हठजोग प्रयोग सुतार भयो; जपभेद जपे तप त्याहि तपे, उरसेंहि उदासि लही सब ॥२॥ सब शास्त्रनके नय धारि हिये, मत मंडन खंडन भेद लिये; वह साधन बार अनंत कियो, तदपी कछु हाथ हजून पर्यो ॥ ३ ॥ अब क्यों न विचारत हैं मनसें, कछु और रहा उन साधनसें ! बिन सद्गुरु कोउ न भेद लहे, मुख आगळ है कह बात कहे ! ॥४॥ करुना हम पावत हैं तुमकी; वह बात रही सुगुरु गमकी; पलमें प्रगटे मुख आगळसें, जब सद्गुरुचर्नसु प्रेम बसे ॥५॥ तनसें, मनसें, धनसें, सबसें, गुरुदेवकि आन स्वआत्म बसे; तब कारज सिद्ध बने अपनो, रस अमृत पावहि प्रेमघनो॥ ६ ॥ वह सत्य सुधा दरसावहिंगे, चतुरांगुल हैं द्रगसे मिल हैं; रसदेव निरंजनको पिवही, गहि जोग जुगोजुग सो जिवही ॥७॥ पर प्रेम प्रवाह बढे प्रभुसें, आगमभेद सुऊर बसे; वह केवलको बिज ग्यानि कहे, निजको अनुभौ बतलाइ दिये ॥ ८॥ रालज, भाद्र. सुदी ८, १९४७ (१) जड़का जहरूप ही परिणमन होता है, और चेतनका चेतनरूपसे ही परिणमन होता है। दोनों से कोई भी अपने स्वभावको छोड़कर परिणमन नहीं करता ॥१॥ जो जड़ है वह तीनों कालमें जड़ ही रहता है, इसी तरह जो चेतन है, वह तीनों कालमें चेतन ही रहता है; यह बात प्रगटरूपसे अनुभवमें आई है, इसमें संशय क्यों करना चाहिये ॥२॥ यदि किसी भी कालमें जड़ चेतन हो जाय और चेतन जड़ हो जाय, तो बंध और मोक्ष नहीं बन सकते, और निवृत्ति-प्रवृत्ति भी नहीं बन सकती ॥ ३ ॥ (१) जडभावे जड परिणमे, चेतन चेतन भाव; कोई कोई पलटे नहीं, छोरी आप स्वभाव ॥१॥ जर ते जडत्रण काळमां, चेतन चेतन तेम प्रगट अनुभवरूप छ, संशय तेमां केम १ ॥२॥ जो जहण काळमा, चेतन चेतन होय; बंध मोक्ष तो नहीं घटे, निवृत्ति प्रवृत्ति न्होय ॥३॥
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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