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________________ पंत्र १५५, १५६, १५७] विविध पत्र आदि संग्रह-२४वाँ वर्ष २२३ १५५ बम्बई, कार्तिक वदी १४ गुरु. १९४७ अंतरकी परमार्थ वृत्तियोंको थोड़े समयतक प्रगट करनेकी इच्छा नहीं होती । धर्मकी इच्छा करनेवाले प्राणियोंके पत्र, प्रश्न आदिको तो इस समय बंधनरूप माना है; क्योंकि जिन इच्छाओंको अभी हालमें प्रगट करनेकी इच्छा नहीं, उनके कुछ अंश विवश होकर इनके कारणसे प्रगट करने पड़ते हैं। नित्य नियममें तुम्हें तथा अन्य सब भाईयोंको इस समय तो मैं इतना ही कहता हूँ कि जिस किसी भी मार्गसे अनंतकालसे ग्रसित आग्रहका, अपनेपनका, और असत्संगका नाश हो उसी मार्गमें वृत्ति लगानी चाहिये; यही चितवन रखनेसे और परभवका दृढ़ विश्वास रखनेसे कुछ अंशोंमें जय प्राप्त हो सकेगी। १५६ बम्बई, कार्तिक वदी १४ शुक्र. १९४७ अभी हालमें तो मैं किसीको भी स्पष्टरूपसे धर्मोपदेश देनेके योग्य नहीं, अथवा ऐसा करनेकी मेरी इच्छा नहीं है । इच्छा न होनेका कारण उदयमें रहनेवाले कर्म ही हैं । मैं तो यही चाहता हूँ कि कोई भी जिज्ञासु हो वह धर्मप्राप्त महापुरुषसे ही धर्मको प्राप्त करे, तथापि मैं जिस वर्तमानकालमें हूँ वह काल ऐसा नहीं है। सबसे पहिले मनुष्यमें यथायोग्य जिज्ञासुपना आना चाहिये। पूर्वके आग्रहों और असत्संगको हटाना चाहिये और जिससे धर्म प्राप्त करनेकी इच्छा हो वह स्वयं भी उसे पाया हुआ है कि नहीं, इस बातकी पूर्ण जाँच करनी चाहिये; यह संतकी समझने जैसी बात है। १५७ बम्बई, मंगसिर सुदी ४ सोम. १९४७ नीचे एक वाक्यपर सामान्यतः स्याद्वाद घटाया है:" इस कालमें कोई भी मोक्ष नहीं जाता।" " इस कालमें कोई भी इस क्षेत्रसे मोक्ष नहीं जाता।" " इस कालमें, कोई भी इस कालमें उत्पन्न हुआ इस क्षेत्रसे मोक्ष नहीं जाता।" । " इस कालमें, कोई भी इस कालमें उत्पन्न हुआ सर्वथा मोक्ष नहीं जाता।" " इस कालमें, कोई भी इस कालमें उत्पन्न हुआ सब कर्मोंसे सर्वथा मुक्त नहीं होता।" अब इसके ऊपर सामान्य विचार करते हैं । पहिले एक आदमीने कहा कि इस कालमें कोई भी मोक्ष नहीं जाता । ज्योंही यह वाक्य निकला त्याही शंका हुई कि क्या इस कालमें महाविदेहसे भी मोक्ष नहीं जाते ? वहाँसे तो जा सकते हैं, इसलिये फिरसे वाक्य बोलो । अब उसने दूसरी बार कहा:-इस कालमें कोई भी इस क्षेत्रसे मोक्ष नहीं जाता । तब फिर प्रश्न हुआ कि जंबू , सुधर्मास्वामी इत्यादि कैसे मोक्ष चले गये ! वह भी तो यही काल था; इसलिये फिर वह सामनेवाला पुरुष विचार करके बोला:-'इस कालमें, कोई भी इस कालमें जन्मा हुआ इस क्षेत्रसे मोक्ष नहीं जाता।' फिर प्रश्न
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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