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(७) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. अने तेनुं अमिततेज नाम पामयु. पछी अर्ककीर्तिना पिता ज्वलनजटी। धरे अन्निनंदन मुनि पासे दीक्षा लीधी. त्यार पठी कपिल ब्राह्मणनी स्त्री सत्यन्नामानो जीव पहेला देवलोकश्री चवीने ज्योतिर्मालाना नदरने विषे अर्क कीर्तिनी पुत्रीपणे नुत्पन्न अयो. माताये स्वप्नामां ताराथी सुशोनित रात्री दीठी हती, तेथी ते पुत्रीनुं सुतारा नाम पामयु. अनुक्रमे ते पुत्री युवावस्था पामी. हवे श्रीपेगराजानी स्त्री अनिनंदितानो जीव पहेला देवलोकथी चवीने त्रिपृष्टनी स्त्री स्वयंप्रन्ना के जे ज्वलनटी विद्याधरनी पुत्री हती तेना नदरने विषे पुत्रपणे अवतस्यो. माताये स्वप्नामां महालक्ष्मीनो अन्निषकोत्सव दीगे हतो; तेथी ते पुत्रनुं 'विजय' एवं नाम पामयु. स्वयंप्रनाये बीजापण एक पुत्रने जन्म आप्यो. तेनुं नाम विजयत्नइ पामयु, डेवट सिंहनंदितानो जीव स्वर्गश्री चवी त्रिपृष्टनी ज्योतिप्रन्ना नामनी पुत्रीपणे नत्पन्न भयो, परी ते पुत्री ज्यारे अनुक्रमे म्होटी अश् त्यारे तेनो स्वयंवर मंझप करी त्रिपृष्ट वासुदेवे दूत मोकली अनेक राजानने तेमाव्या.
आ वखते अर्ककीर्तिये का कार्यमाटे पोताना प्रधानने त्रिपृष्ट वासुदेव पासे मोकल्यो. ते प्रधान त्रिपृष्ट पासे आवी हाथ जोमीने कहेवा लाग्यो के, "हे देव ! जो आप आज्ञा आपो तो अमारा राजा अर्ककीर्तिनी पुत्री सुतारा पण या तमे रचेला स्वयंवरमां एकग थयेला राजानमाथी पोताने इछित वर वरे." प्रधाननां आवां वचन सांजली हर्ष पामेला त्रिपृष्ट वासुदेवे का. "हे प्रधान! तमारे अर्ककीर्ति राजाने कहेवू के, म्हारे तेमना अने म्हारा घरमां कां अंतर नश्री.” पठी पुत्रीने साथे लइ अमिततेज पुत्र सहित अ
कीर्ति राजा त्रिपृष्ट वासुदेवना पोतनपुर आव्यो, त्यां तेनो त्रिपृष्ट बहु आदर सत्कार कस्यो. पठी त्रिपुष्टे स्वयंवर मंझप रचावी तेमां जूदा जूदा नामवाला सिंहासनोमकाव्यां.तेमांसर्वराजान पोतपोताने सिंहासने वेगअनेत्रिपृष्ट तथा अचल ए वन्ने नाश्यो स्वयंवरना मध्यन्नागे रहेला पोतानां सिंहासन नपर वेग,
या वखते स्नान करी श्वेत वस्त्रने धारण करवाथी सुशोनित वनेली, नज्वल अंगराग अने पुष्पमालाथी मनोहर देखाती, म्होटी पालखी वेठेली, बन्ने वाजुये चामरोश्री विजाती, ज्योतिःप्रन्ना अने सुतारा वन्ने कुमारीयो स्वचा मांधी नतरेली देवकन्यानी पेठे स्वयंवर मंझपमांावीने पालखीमांथी नीचे