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पांव चरित्र.
( ३०१ ) कता एवा जे पुरुषने जुंनक देवताए आकाशमां नबाल्यो, पी जे श्री नेमिनाथ प्रभु पासे दीक्षा लइ मोक्षपद पाम्यो, ते श्री नवमा बलदेवना पुत्र श्री कुब्जवारक मुनि जयवंता वर्तो ॥ ४५ ॥ आ कुब्जवारक मुनिनो अधिकार रामना अधिकारमां कहेलो बे. त्यांथी जाएगी लेवो.
पंच विनिवपंमुसुया, चन्दशपुत्री जुहिलप्पमुहा ॥ दोमासी संलेहपुवि सत्तुजये सिद्धा ॥ ४६ ॥
अर्थ - चौद पूर्वना धारणहार युधिष्टिरादि पांच पारुवो शत्रुंजय तीर्थने विषे वे मासनी संलेखना करीने मोक्षगति पाम्या बे ॥ ४६ ॥
प्रकरणने विषे पांवचरित्र बहु म्होटुं बे; परंतु आठेकाले तो कांइक - रहस्य युक्त संक्षेपथीज कहीए बीए.
॥ पांव चरित्र ॥
जेमले यौवनावस्थामां रहीने पण त्रण जगतूने जीतवामां मलरूप कलाकीमाना सुजट एवा कामदेवने जीत्यो बे; ते त्रण लोकना जनोए पूजेलां चरणकमलवाला श्री नेमिनाथ प्रभु तमारा कल्याणोने वृद्धि पमाको त्र जगत्मां प्रसिध्यशना समूहवाला अने एज जवमां दीक्षाथी प्राप्त थयेला म-होदयवाला श्री पांवानुं पवित्र चरित्र फक्त पोताना बोधने अर्थे करूं हुँ.
ज्यां श्री शांतिनाथ, कुंथुनाथ ने अजितनाथ एत्रो जिनेश्वरोनां म्होटां श्रेष्ठ चैत्यो निरंतर शोनी रह्यां ने एवं कुरुदेशना आनुषणरूप अने सर्व वस्तुसमूहना निवास स्थानरूप हस्तिनापुर नामे नगर बे. त्यां श्रीरुषनदेव प्रजुना पुत्र कुरुराजाना असंख्य पूर्वजोश्री सुशोभित एवा वंशने विषे नृत्पन्न येलो, शांत प्रकृतिवालो ने चंड्समान यशना समूहवालो श्रीशांतनु नामे राजा राज्य करतो हतो. संपूर्ण मंगलवाला चंदनी पेठे कलानथी पूर्ण एवा ते राजामां निश्वे चंडमां कलंकनी पेठे मृगयाना व्यसनरूप एक म्होटो दोष हतो. एक दिवस चपल एवा म्होटा अश्व नपर बेठेलो अने हाथमां धनुष्य बाण धारण करवाथी अनेक जीवोने त्रास पमागतो ए राजा हरियादि अनेक जीवोथी भरपुर एवा वनमां मृगया करवाने माटे गयो. त्यां अत्यंत मृगयाना विनोदमां प्रवृत्त ययेला नूपतिये चारे तरफ अनेक वालो