________________
[हिन्दी-गद्य-निर्माण कहीं मिलती ही नहीं ! प्रसंग-प्राप्त अव हमें यहाँ उर्दू के साहित्य की समालोचना का भी अवसर प्राप्त हुआ है: किन्तु यह विषय अत्यन्त ऊब पैदा करने वाला हो गया है, इससे इने यहीं पर समाप्त करते हैं । उर्दू को समालोचना फिर कभी करेंगे।
शिवमूर्ति
ले० पं० प्रतापनारायणमिन] हमारे ग्राम-देव भगवान भूतनाय से अकय्य अप्रतर्य एवं अचित्य हैं । तो भी उनके भक्त जन अपनी रुचि के अनुसार उनका रूप, गुण, स्वभाव ' कल्पित कर लेते हैं। उनकी समी वार्ते सत्य है, अतः उनके विषय में जो कुछ कहा जाय सब सत्य है । मनुष्य की भॉति वे नाड़ी श्रादि वन्धन से बद्ध नहीं हैं । इससे हम उनको निराकार कह सकते हैं और प्रेम दृष्टि से अपने हृदय ; मन्दिर में उनका दर्शन करके साकार भी कह सकते हैं । यथातथ्य वर्णन उनका कोई नहीं कर सकता तो भी जितना जो कुछ अभी तक कहा गया है और आगे कहा जायेगा सव शास्त्रार्थ के श्रागे निरी बकवक है और विश्वास के आगे मनः शांतिकारक सत्य है !!! महात्मा कबीर ने इस विषय में कहा है वह निहायत सच है कि जैसे कई अंघों के आगे हाथी पावै और कोई उसका नाम बता दे, तो सब उसे टटोलेगे। यह तो संभव ही नहीं है कि मनुष्य के बालक की भाँति उसे गोद में ले के सव कोई अवयव का बोध कर लें। केवल एक अग टटाल. सकते हैं और दॉत टटोलने वाला हाथी को खूटे के समान, कान छूने वाला सूप के समान, पॉव स्पर्श करनेवाला-खम्भे के समान ) कहेगा । यद्यपि हाथी न खूटे के समान है और न खम्भे के। पर कहने वालों.. की वात मूठो नहीं है। उसने भली-मोति निश्चय किया है और वास्तव में हाथी का एक अंग वैसा ही है जैसे वे कहते हैं । ठीक यही हाल ईश्वर के विषय में हमारी बुद्धि का है । हम पूरा-पूरा वर्णन वा पूरा साक्षात् कर लें तो