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[हिन्दी-गद्य-निर्माण वरन् हिमालय पार लद्दाख का मुल्क भी जो हिन्दुस्तान की हद से बाहर और तिन्वत का एक भाग है अब इस इलाके के साथ महाराज के पास है और इस हिसाब से यह राज वायुकोन से अग्निकोन की तरफ अनुमान साढ़े । तीन सौ मील लम्बा और ईशान से नैऋत कोन को अढाई सौ मील चौड़ा । होवेगा विस्तार पच्चीस हजार मील मुरम्वा है हद उसकी उत्तर और पूर्व को । चीन को अमलदारी और पश्चिम को अफगानिस्तान और दक्षिण को पञ्जाब के सरकारी जिले और चम्बा और विसहर के छोटे छोटे पहाड़ी रजवाड़ों से मिली है इनमें कश्मीर की दून पोथी और किताबों में बहुत प्रसिद्ध है।
और सच है। उनकी जहाँ तक तारीफ़ कीजिये सब वजा है और दुनिया में जितनी प्रा.सा है कश्मीर के लिये सब रवा है । जहान के पर्दे पर कदाचित । इस साथ का दूसरा स्थान हो तो हो सकता है पर इस वात का हम मुचलका लिख देते हैं कि उससे बिहतर कोई दूसरी जगह नहीं है क्योंकि हो ही नहीं सकती । मानों विधाता ने सृष्टि की सारी सुन्दर वस्तुओं का वहाँ नमूना । इकट्ठा किया है। यह कश्मीर हिमालय के बीचो बीच में पड़ा है जैसे कोई बादामी थाली हो । इस तरह पर यह स्थान चौफेर हिमाच्छादित पर्वतों से घिरा रहा है और वीच में ७५ मील लम्बा ४० मील चौड़ा सीधा मैदान बट्टाढाल है । पहाड़ों समेत यह मैदान अनुमान ११० मील लम्बा और ६. मील चौड़ा है। पुरानी पुस्तकों में लिखा है कि किसी समय में यह सारा इलाका पानी के तले डूबा हुआ था और उस झील को सतीसर कहते थे । लोहे तॉवे
और सुरमे की इस इलाके मे खान हैं । दरख्त सायादार और मेवे के इस । इफ़रात से हैं कि सारे इलाके को क्या पहाड़ और क्या मैदान एक बाग हमेशा वहार कहना चाहिये । कोई ऐसी जगह नहीं जो सन्जे और फूलों से वाला हो । सन्जा कैसा मानों अभी इस पर मेह वरस गया है पर जमीन ऐसी सूखी कि उस पर वेशक बैठिये गइये मजाल क्या जो कपड़े में कहीं दाग लग जावे । न कॉटा है न कीड़ा-मकोडा न साप विच्छ्र का वहाँ डर है न शेर हाथी । के से मूजी जानवरों का घर । जहाँ वनफशा गाय भैसों के चरने में श्राता है मला वहाँ के सब बाजारों का क्या कहना है मानों पथिक जनों के श्राराम के