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________________ ।। ५६ नारीन करमीर] . लिये किसी ने सन्न मख़मल का बिछौना पिछा रखा है और उनके बीच लाल पीले सफेद सैकड़ों किस्म के फूले इस रंग रूप से खिले रहते हैं कि जी नहीं. चाहता जो उन पर से निगाह उठाकर किसी दूसरी तरफ डालें । कहीं नर्गिस और कहीं सोसन, कहीं लाला है और कहीं नस्तरन, गुलाब'का जंगल चमेली 1 का बन । मकान की छतें वहाँ तमाम मिट्टी की बनी हैं बहार के मौसम मे - उन पर फूलों का बीज छिड़क देते हैं। जब जंगल में हर तरफ़ फूल खिलते है और मेवों के दरख्त कलियों से लद जाते हैं शहर और गांव भी चमन के' नमूने दिखलाते है । लोग दरख्तों के नीचे सब्जों पर जा बैठते हैं चाय और कबाब खाते हैं नाचते गाते हैं । एक आदमी दरख्त पर चढ़कर धीरे-धीरे उन्हें हिलाता है तो फूलों की बर्खा होती रहती है। इसी को वहाँ गुलरेजी का मेला कहते हैं । पानी भी वहाँ फूलों से खाली नहीं कमल और कमोदनी इतने खिले हैं कि उनके रंगों की श्राभा से हर लहर इंद्रधनुष का समा दिखलाती है । भादों के महीने मे जब मेवा पकता है तो सेव नाशपाती - के लिए केवल तोड़ने की मिहनत दार है दाम उनका कोई नहीं माँगता जगल का जंगल पड़ा है. और नो बागों में हिफाजत के साथ पैदा होती है वह भी रुपये के तीन चार सौ से कम नहीं बिकतीं । नाशपाती कई किस्म , की होती है । बटक. सब से बिहत्तर हैं। इसी तरह सेव भी बहुत प्रकार के ___ होते हैं । बर्सात बिलकुल नहीं होती । पहाड़ इसके गिर्द इतने ऊँचे हैं कि बादल ' जो समुद्र से आते हैं उनके अधोभाग ही में लटकते रह जाते हैं पार होकर कश्मीर के अन्दर नहीं जा सकते । जाड़ों में दो तीन महीने बर्फ खूब पड़ती . __ है और सर्दी भी शिद्दत से होती है यहाँ तक की झीलों पर पाँले के तख्ते जम ., जाते हैं और वहां के लोग कागड़ियों में जो जालीदार डब्बे की तरह मिट्टी की - अँगेठियां होती हैं आग सुलगा कर गले में लटकाए रहते हैं जिसमे छाती - गर्म रहे । वाकी नौ दस महीने बहार है न गर्मी न जाड़ा और धूल गर्द और लू और अांधी का तो क्यों होना था वहाँ गुजारा । मई और जून में दो चार 'छीटें मेहं के भी पड़ जाते हैं । झेलम अथवा वितस्ता इस इलाके के पूर्व से निकल कर पश्चिम को इस मजे से बहती चली गई है कि मानों ईश्वर ने जैसी
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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