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[हिन्दी-गव-निर्माण की सामर्थ्य है जो आपको युद्ध मे विजय कर सके, आपने अपने वालों की वर्षा से युद्ध में प्रलय मचाकर मेरी बड़ी सेना का नाश किया है। अब मिस रीति से हम आपको युद्ध में विजय कर सकें और अपनी सेना बचा सके हो - हे पितामह ! आप हमको बताइये।" । इसके उत्तर में भीष्म जी ने कहा कि हे राजा ! तुम्हारी सेना में, .. द्रुपद का बेटा, शूरवीर शिखण्डी नाम का है। जिस प्रकार से यह पहिले नी । था, फिर पुरुष हुश्रा, इसका वृतान्त तुम जानते हो। अर्जुन तीक्षण पदों : को लिये हुये शिखण्डी को आगे करके मेरे सम्मुख जो आवे तो धनुष वाण हाथ में लिये हुए भी मैं उस पहिले स्त्री रूप रखने वाले पर किसी अवस्था में शस्त्र न चलाऊँगा । इस कारण यह उत्तम धनुषधारी अर्जुन उसी को मेरे
आगे नियत करके मुझको मारे । निस्सन्देह तुम्हारी विजय होगी। युधिष्ठिर तुम मेरे इस वचन का प्रतिपालन करो।
धन्य हो वीर भीम ! यह तुम्हारे योग्य ही था कि सत्य का पालन . कर स्वयं अपने मरने का उपाय बतलाया । धन्य है यह भूमि जो तुम्हारे समान साहसी सत्यव्रत और दृढ़प्रतिशवीर पैदा करे । तुम्हारे ही ऐसे पवित्रामात्रों के पुण्य से श्राज त्रैलोक्य स्थिर है, तुम्हारे ही ऐसे प्रभाव से संसार में आज भी कुछ धर्म दिखाई पड़ता है। और तुम्हारी कीर्ति की अजेय ध्वजा के नीचे अाज भी भारतवासी यह यत्न कर रहे हैं कि बहुत दिनों के आलस्य के पाप का प्रायश्चित्त कर तुम्हारी सन्तान कहलाने के योग्य हो।
प्रातःकाल महाभारत का दसवां दिन प्रारम्भ हो गया है, पाण्डवों की सेना भीष्म जी के उपाय बताने के अनुसार शिखण्डी को आगे कर भीष्म पितामह के मारने के लिए उद्यत हो रही है। कौरवों के बड़े-बड़े सैनिक द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, जयद्रथ, अश्वत्थामा आदि भीष्म पितामह की रक्षा में . प्रवृत्त है । घोर संग्राम हो रहा है, दोनों ओर के महस्रों वीर रण-गंगा में लान कर अपने क्षत्री-धर्म को निवाहते वीरगति या 'ब्रह्मलोक की यात्रा कर रहें है।
पितामह भीष्म भी धनुष को टनकारों से घोर शन्द करते हुये अपने वाणों से श्राकाश को आच्छादित कर रहे हैं, परन्तु शिखण्डी के सम्मुख से हर