________________
।
भीष्माश्मी]
२८१ अर्जुन श्रीकृष्ण के चरणों को पकड़ कर उन्हें उनकी उस प्रतिशा की याद ' दिला रहे हैं कि "हम नहीं लड़ेंगे' और प्रार्थना कर रहे हैं कि “पितामह
को मारना मेरा काम है, आप अपने प्रण की ओर ध्यान दीजिये ।" इस प्रकार अर्जुन के स्मरण दिलाने पर श्रीकृष्ण फिर रथ पर चढ़ गये हैं और
फिर अर्जुन और कृष्ण और पाण्डवों की समस्त सेना पितामह के शत्रप्रहार __ से घायल और पीड़ित हो रही है।
- अब सूर्य अस्ताचल को चले गये हैं। दिन के परिश्रम से थकी हुई. __ दोनों सेनायें अपने डेरों में विश्राम कर रही हैं। महाराज युधिष्ठिर के डेरे , - मे सलाह हो रही है । युधिष्ठिर भीष्म जी के पराक्रम को देव निराश हो रहे
हैं। अपनी सेना भीष्म के सामने निःसहाय देखकर श्रीकृष्ण जी से कह रहे है कि "भीष्म जी का विजय करना, महाकठिन और असम्भव है। मेरी सेना
भीष्म जी के सामने पतिंगे के समान नष्ट हो रही है । मेरे शूरवीर प्रतिदिन - भीष्म जी के हाथों से मारे जा रहे हैं, इस कारण से मुझे ऐसा जान पड़ता --- है कि मेरा कल्याण वन को चले जाने में ही है !"
इस बचन को सुनकर श्रीकृष्ण जी ने युधिष्ठिर का ढाढ़स दिया कि अर्जुन अवश्य भीष्म पितामह को मारेंगे, फिर युधिष्ठिर ने कहा कि "अच्छा चलो हम सब लोग भीष्म पितामह से पूछे कि वे किस रीति से मारे जा सकते हैं । यद्यपि वे दुर्योधन की ओर लड़ रहे हैं तो भी उन्होंने हम लोगों 'को युद्ध में सलाह देने का प्रण किया है। वे स्वयं अपने मरने का उद्योग बतावेंगे।"
श्रीकृष्ण जी और पाण्डवों ने भी यह बात स्वीकार की और सब मिलकर नम्रता के साथ पितामह के डेरे में गये । भीष्म जी ने श्रादर और * स्नेह से उनको अपने पास बिठाया और उनके आगमन का कारण पूछा। . युधिष्ठिर ने अपने पाने का कारण बताया और कहा कि 'हम लोग श्राप में किसी प्रकार की त्रुटि नहीं जानते, आप युद्ध मे सदा धनुष मण्डल के समान दिखाई पड़ते हैं | हम लोग आपको धनुष चढ़ाते, वाण लेते, संधानते और फिर सूर्य के समान रथ पर चढते हुये भी नहीं देख सकते हैं, अब किस पुरुष
'