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[हिन्दी-गद्य-निर्माण
उसमें चीनियों के विषय में उन्हें बहुत कुछ लिखना पड़ा, इसलिए चीननिवासी का भाव उन्हें अनेक वार और अनेक भांति से लाना पड़ा, सोहर ।। बार चीनी लोग अथवा चीन निवासी लिखना उन्हें अच्छा न लगा, और विवश होकर इस भाव-प्रदर्शनार्थ उन्हें चीनी शब्द गढ़ना पड़ा । चीनी शब्द शकर का भी अर्थ देता है सो हर घड़ी ऐसे द्वयर्थ वोधक शब्द के स्थान पर चीना शब्द का लिखना सभी लोग समझेगे । - एक ही भाव अनेक प्रकार से तथा अनेक शब्दों मे भी कहने की आवश्यकता पड़ती है। ऐसी दशा मे पुनरुक्ति दूषण से बचने को यदि कोई लेखक शब्दों के अप्रचलित रूपों का व्यवहार करे तो किसी प्रकार का दोष नहीं समझना चाहिए । जैसे सूस शब्द संस्कृत का नही है, वरन् एक साधारण देशज शब्द है । यदि मूमपने के भाव का अनेकानेक सास्कृत व्यवहारों से इतर लिखने मे "सूमता" शब्द का प्रयोग किया जावे तो कोई दोष नहीं है । इसी प्रकार अपने तथा बाहरी भाषाओं के शब्दों को अपनाकर उनको अपने अन्य शब्दों के समान रूपों से लिखना उचित समझ पड़ता है, नहीं तो नवागत भावों तथा विचारों के यथावत् व्यक्त करने मे कठिनता पड़ेगी। जहाँ बाहर का कोई शब्द हो और उसके भाववोधक अपना कोई अच्छा शब्द न
देख पड़े, वहाँ वेधड़क उसका व्यवहार करे । कुल वातों का साराश यह है . कि भाषा के स्वाभाविक विकास को कृत्रिम नियमों से न रोके।
बहुत लोगों का विचार है कि हिन्दू धर्म हिन्दी भाषा और हमारा प्राचीन आर्यपन तभी तक स्थिर रह सकते हैं तब तक हर मार्ग की प्राचीन लीक प्रति वर्ष नवीन पहियों से गहरी होती जावे, अन्यथा नहीं । यही एक भारी भूल है जिसने सहस्रों वर्षों से हम लोगों को बड़ी हानि पहुँचाई और अव भी पहुंचा रही है । यदि सूक्ष्मदर्शिता से देखा जावे, तो जिन कारणों से महमूद गजनवी और शहाबुद्दीन गोरी से क्षुद्र शत्रुओं ने भारत पर विजय पा ली, वे सब कारण किसी न किसी रूप मे हम लोगों मे अव तक प्रस्तुत हैं और अब भी हमें हानि पहुंचा रहे है । प्रत्येक नवीनता हमे हौवा जान पड़ती है और उसकी सूरत देखते ही हमारे रोयें खड़े हो जाते हैं। उसके औचित्य