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________________ । [हिन्दी-गद्य-निर्माण भयो भूमि भारत में महा भयंकर भारत। । भयो वीरवर सकल सुभट 'एकहि संग गारत !!' मरे विबुध नरनाह सकल चातुर गुन मण्डित । विगरो जन समुदाय विना पथ दर्शक पण्डित ।। सत्य धर्म के नसत गयो वल बिक्कम साहस । विद्या बुद्धि विवेक विचाराचार रह्यो जस ॥ नये नये दुख मत चले, नये मगरे नित बाढ़े। । । नये नये दुख परे सीस भारत पै गाढ़े ॥ यही ब्राह्मणों की अदूरदर्शिता थी कि उन्होंने पिछले कोटे लोकभाषा में धर्म की शिक्षा का क्रम नहीं चलाया था, जिस कारण सत्यधर्माचार शिथिल हो गया और नाना प्रकार के अनाचारों का प्रचार हो चला था, जिसके संशोधन के अर्थ लोग उद्यत हुए । नये नये प्रकार के धर्म और आचारविचार की शिक्षा सुनकर अपने धर्म से अनभिज्ञ जनः अचानक बहक चले। . बौद्ध धर्म के डंके वजने लगे । सस्कृत का पठनपाठन छूटा । प्राकृत के दिन लौटे । वह राष्ट्र और राजभाषा को छोड़ कर धर्म की भी भाषा वन चली । आर्पप्राकृत वा महाराष्ट्री अव मागधी और पाली बन भाषाओं की माँ कहलाने का दावा कर चली । महाराज प्रियदर्शी अशोक के प्रताप के संग यह भी दूर-दूर तक अपना अधिकार जमा चली, क्योंकि जब बुद्धदेव प्रकट हुए,प्रचलित देश भाषा ही मे वे अपना उपदेश कर चले। संस्कृत में उपदेश का होना भी कठिन था। राजा का सहारा पाकर बौद्ध मत सारे भारत में व्याप्त हो गया । जैन धर्म के धन भी घुमड़कर घिर रहे थे। ब्राह्मणों के लाले पड़ रहे थे । जैसे आज उदू के प्रवल अधिकार से हिन्दी कोनों में दुवक-दुवक कर छिपी जीवन धारण कर रही है, संस्कृत भी प्राकृत से दवी-छिपी अपनी प्राणरक्षा कर रही थी। तो भी सनातन धर्म के सभी ग्रथ सस्कृत ही में होने के कारण नवीन धर्मावलम्वी जन प्राचीन धर्म के खण्डन और स्वमतमण्डन के अभिप्राय से उदारजन साहित्य-परिज्ञान और उसके अनुयायी धर्म ज्ञानार्थ उसे कुछ न कुछ सीखते-समझते ही रहे। -
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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