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चूलिका। वास और प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त है। प्रत्यक्ष-परोक्ष दोनों हालतोंमें झूठ बोलनेका तीन कायोत्सर्ग तीन उपवास ओर अतिक्रमण है और मन, वचन, कायसे झूठ बोलनेका चार कायोत्सर्ग, चार उपवास और अतिक्रमण मायश्चित्त है ॥१५॥ असकृन्मासिकं साधोरसदोषाभिलाषिणः।। कषायादभियुक्तस्य परैवा द्विगुणादि तत् ॥१६॥ __ अर्थ-कपायवश बार बार झूठ बोलनेवाले साधुको पंचकल्याणक प्रायश्चित्त देना चाहिए। तथा दूसरेसे मोरित होकर झूठ बोलनेवालेको पूर्वोक्त कायोत्सर्गको आदि लेकर मासिक पर्यन्त जो प्रायश्चित कहा गया है वह दूना तिगुना चागुना अथवा इससे भी अधिक गुना देना चाहिए ॥ १६ ॥ नीचः पैशून्यपुष्टस्य गच्छाद्देशाद्वहिष्कृतिः। तच्छ्रुत्वा मन्यमानोऽपि दोषपादांशमश्नुते ॥
अर्थ-पैशून्य भावयुक्त निकृष्ट साधुको तो गच्छसे और देशसे वाहर निकाल देना चाहिए। जो साधु इस निकृष्ट साधुके उन वचनोंको मान देता है वह भी उसके उस दोषके चतुर्थाशका मागो होता है।॥ १७॥ ___ इस तरह सत्यव्रतके प्रायश्चित्तोंका कथन किया अव अचौर्यव्रतके प्रायश्चित्तोंका कथन करते हैंसकृच्छ्न्ये समक्षं चानाभोगेऽदत्तसंग्रहे। कायोत्सगोपवासाः स्युःप्राग्वेन्मूलगुणोऽसकृत् ॥