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[ ३३ ]
|| कवित्त ।।
अला तूझ उवारण जयो जगदीश जुरारी।
नरहर गुरु हरनाथ निमो निकळक निजारी. कन्हैया कान्हुआ निमो निकलक नरेसर ।
ग्वाळ निमो ग्वाळिया, साच साथै सारगधर । राजि ना किसीपरि रीझवा, राज वडा राधारमण,
पीरियौ तूझ दाख प्रमु, मूझ निवाजे महमहंण ।। 'पाचा सा पहिळादा, पाट हरिचद पधारो,
नवां कोड़ियां तूर, सात कोडिमां सुधारौं । बारा सा बळि राउ जोति सा मिळिया जाए,
चढिया छ चच्ळे, अलख गुर ईसर आये, आरती इसी अरिहत री मोटा पातिग मारती,
आरती अलख-आराधना ईसरजी ना भारती।
॥ इतिश्री अलख-आराध सपूर्ण ।