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॥६०॥ श्री गणेशायनमः श्री गुरुभ्यो नमः अथ गुण अजंपा जाप
॥ दूहा ॥ हैं मांगां देवी हुयो, अयिरल वांरिग उकत्ति। वळे 'विनाइक वीन, सिद्ध बुद्ध द्यो सुमत्ति ॥ १॥ वाह विनाइक देवता, नमो विनाइक नाथ । तू सिद्धदायक रूप सुभ, तू सत्गुर ससिमाथ ॥ २॥ सूडाळो लाइक-सुरां, राम सरीखो रूप । ब्रह्म सतगुर हूँता वडौ, ईसरदास अनूप ॥ ३ ॥ ईसारणंदि राधियो, आठइ पहर अलेख । दीठो दरसण देव रौ, अोळखीयो प्रभु एक ॥ ४ ॥ एक नमो तू' ईसवर, समपि तुहारी सेव । ब्रिज वाळा चरिताळ ब्रह्म, दीन दयाळा देव ॥५॥ भगत तुहारा सहि भला, भिले अरिजरण भीम । भगति दीगै जो भूधरा, तो तोनू तसलीम ॥६॥ तनां कहा छा कमा, दुरवळ ना करि दास । कनि करिहो केसवा, परमेसर जम-पास ॥ ७ ॥ तू जगनाइक जगत गुर, तू अविगत जग ईस । जगति घड़े भांजे जगत, जयौ जयो जगदीस ।। ८ ।। महादेव तू महारुद्र, तू भगवत भगवान । भगतवछळ तू भूधरा, तूं गोरख वम ग्यान ॥ ६ ॥ सास सासि समरौ सदा, सरव सास औ प्राप। साच संवाही साधुवा, जपो अजपा जाप ।। १० ।