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कवित्ति पारवती परमेस सरब पारबती सती । कहि हो कहि त्रिसकति जोग तु गोरख जती॥ सीता श्री सारिखी श्रीया सारंगधर सरिखी। सावतरी सुभराज प्रघळ ब्रह्मा जी परखी ॥ तु पच्छिमि पाट पतिसाह तु भेस सरव भगवत भू ।
पीरीये कहै परमेसरी हीगलाज सुप्रसत्र हू || ॥ इति श्रीहीगळाजरासौ सपूर्णम् लिखतु लालस पीरदान वाच जिण नु राम-राम स० १७९२ काती बदि १४ वार थावर छ ।
सकति हुए
सुभराज करे तना सुर सामिणी ताहर नाम साम्हेई तरा। जयो निमो तु ना जग जामिणी कतियारणी आदेश करां ॥१॥ कालिका तु हिज कुवारी काया मनछा पारबती महमाई। सावतरी सीता सुर सामरिण साधूडा रो हुवे सिहाई ॥२॥ सकति हुए भगता रै साथे घाणीया मा असुरानां घाति । धरम तणे तु हिज धणीयाणी पाप पछाडि परौ परभाति ॥शा प्राव हे आराधे आई भाई हे दाखे भहरी। पीरीय तणे उतारै पातिग साचा रे वसिजो सहरि ॥४॥
पीरदानु कहै ॥ श्री सारदाइ निमा । श्री गुरुभ्यो नमा ।।
हिज धरणीयाणा
हे दाख