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अंथ गुण अलख अाराध लिख्यते
॥हा॥ वघवारणी तू ऐक ब्रम, प्रोऊ कार अपार । 'किमि करि कीधौ काळिका, विसव ती विस्तार ॥१॥ विसव कियौ ते बीस हथ, कियो विमेख विचार। . इम्यां विदि लीधी इसौ, कोधी ले करतार ॥२॥ निमो निमो लिखमी निमो, मात तुहारी मति । निरगुरण ना ते निर्मिधयो, सरगुरण कीयो सकति ।। ३ ।। सकर ना सुरजेठ ना, आस तुहारी आस । सावतरी थारी सघर, वडो सुन्न घर वास ॥ ४ ॥ जग जिगणी तूनां जयो, कु डनिरिण त्रिसकति । हरता करता तू हुई, माया नाम मुगति ॥ ५॥ ध्यान करै थारौ घरम, अलख अपपर आप। . महादेव सरिखा मरद, जपे तुहारी जाप ।। ६॥ । -तू सिवि काया सरसती, विसन सरीखी वेस । ब्रह्मा इणिपरि वदै, आदि सकति आदेस ॥ ७॥ मध कीटग तै मारिया, तू सबळी सुर राइ। मारकड ना मानियो, पिंडति लगायो पाइः॥ ८ ॥ -सदा सदा हुँती सदा, आदि बिना तूं आप। सांमि नही को सकति है, वाप तणे तू वाप || ६|| वडा वडेरी तू वडी, खिमिया तू खिडि खिडि । अधकि देव तू साउरा, परा परा तू पिंड ॥ १०॥ विदिया समपौ बीस हथि, सरसति दियो समति । दिनो उकति आखर दियो, सु प्रसन्न हो सकति ॥११॥ घट हुँता अकरम घटे, अधिक घटे अपराध । कृपा करौ तौ हूँ करौ, अलख तणो आराध ॥ १२ ॥