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[ २० ] अमरां नरा पन्नगां आई, कोड़ि ब्रहम नां खबरि न काई। काळ रूप तु कहिजे काळी, चामड मात निभो चरिताळी।
अथ दूहा तु चरिताळी चामंडा, बहु गरढेरी वाळ । आदि विहरणी ईसरी, काळ तणे तु काळ ॥ १ ॥ धिरणीयाणी तु हिज धिणी, दईन तुहारा दूत । अहि नर अमर उपाइया, भिळे निपाया भूत ॥२॥ आदि सकति , तु ईसरी, दूजां नावै दाइ। . पीर तणे सिर पावई, महर करे महामाइ ।। ३ ।। महमाया माया निमो, परम न जाणे पार । ते हीज निपाया तीन गुण, के जाया करतार ॥४॥ दानव सहि तु सा डरै, अमर करै आदेश। - नाग शेष तुनां नमै, मोटो देव महेश ।। ५॥ समद सां न तु सांसही, निमरिण कर नवनाथ । इदि उतारै भारती, सकति हुई ससमाथ ॥ ६ ॥ हर विरंच चाकर हुआ, अमर करे सहि पास । करणाकर निसदिन करै, देवी नां अरदास ॥ ७॥ हाथ नमो तु वीस हथि, जुधि जुधि कीधी जैत । गिळिया लोही रा गटक, देवी दळिया दैत ॥८॥ वापडा कंटक डिस, आइए पारि उतारि । ताहरा सेवग तारिया, तिमि मुनाई तारि ।। ६॥ काळी माता काहली, भगता ऊपरि भाइ। जिमि तुठी सुर जेठ नां, इमि तूसे महमाइ ।। १० ।।
___ ॥छद त्रिभंगी। तो रवराया राणी सकति सप्राणी भगता भाणी मिनि भाणी। धन असुरा घारगी जुध मां जारणी जवने जारणी सहि जागी॥ जड़ धारि न जाणी प्रघळ पुरांणी अधिकि हुई किमि करि इतरी। पारवती निमोहेमरी पुतरी सीतामाता सावतरीजीसीतामाता सावतरी।।