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परमेसरपुराण
॥ अथ दूहा, आराध रा॥ प्रथम विनायक पूजिय, प्रघळ हुयै कोई पन । रिधि सिधि समप राजियो, गुणपति देव गहन ॥१॥ काइमि काइमि केसवा, राम तुम्हारौ राज । हूँ थारौ बारट हुनौ, सधर धणी सुभराज ॥२॥ ढील मती करिजो घणी, वैगा सांवळियाह। बारट बाहुड़ियो वहत, साहुलि सांभळ्यिाह ॥ ३ ॥ में घोड़ा अ आदमी, कहौ नी आया काह । कोइ मोटी पारभ कियौ, प्रारभ निमो अलाह ॥ ४ ॥ तू तीकम रहमाँरण रव, तू काइम करतार। तू करीम वसदेव तण, आप लियौ अवतार ।।५।। घण दाता जीवै घरणी, वैकठ तया वरीस । पीरदान बारट पुणे, आलम नां आसीस ॥ ६ ॥ कद साभळसौ काइमा', पीपल गाइ पुकार। हंस राजा कद हीसस, कद मिळिस करतार ।। ७ ॥ कळस थपावै कोड करि, निरखि चलावै नाउ । समद तरी जै साधुग्रां, समरौ आलम साह ।।८।। बीज तण दिन वोलिया, वचन धरम२ रा वाह । साचव हरि जो साधुग्रां, आया आलम साह ।।६।। उरिण दिसड़ी सू आविस, वाह पछिम री वाट । जे चाहै जगदीस ना, पूजि पछिम रौ पाट ॥ १० ॥
१ केसवा । २ अमोलिक ।