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तू अलेप प्रछेप श्रज, नाग कहे
पारब्रह्म
रो
नरे सुरे पायो नही, तू नान्हो मोटो त्रिगुण, तूं प्रति बुरी तू सरगुरण निरगुरण सही, अइयों रूप सगळा इ भगता सिर, निगम करें आदेस नित, श्रइयो देव
परमेसर
रं
निरकार ।
पार ॥ १४ ॥
अनूप । अरूप ॥ १५ ॥
प्रम्म ।
अगम्म ॥ १६ ॥
॥ छन्द मोती दाम ॥
अइयो परमेसर देव अगम, भले तैं कीधी जाड भरम | कीया सहि थोक निमो करतार, परमेसर तुझ तो कोई पार । अइयो गरढौरा ग्यांन अनत, हुआ प्रति दीह भले अरिहंत । भले भगवंत भले भगवान, पुरातम पूरण नाथ प्रधान । प्रमेसर तुझ वखारणा पेट, जायो तै वाळ भलो सुर जेठ । नमो महाराज तुहारी निद्र, उपाया भूत. उपाया इन्द्र । की चितमन ने दुध च्यार, उपायो एक वकै अहकार । दीना रा नाथ कियो धंघ दीघ, कीया तत पाँच महा तत कीघ । सवति गध कीयो, सपरस, दसोदस देव इन्द्री दस दस | वभेसर वाप तुहारा वध, कहे कुरण जीव तुरंगम कघ । जीवांरा नाथ अमोलक जीव, दरसण दीजें देव दईव । वड़ो ठग घृत अहो रुघवीर, सही तू ऐकलमल सधीर । अइयो गुरडेस तरणा असवार, महा मधु कीटक रामण मार । सदा रा दास व्रजां रा सत, अगासुर फाड़ बगासुर अन्त । ग्वाला विच ऊभी कभी गाज, सही संगठासुर बैठी साझि । तृणावत त्रोड़ि बंछासुर वाहि, अहो अविगत तुहारी आहि । गिले लख देत गयासुर गोड़, छोड़ावरण सत भली रिरणछोड़ । जयो जगनाथ तुहारी जोर, किसौ नख ऊपर भार किसोर । चड़ा भड़ माघा राधा वंद, नमे पगि लागी इद नरिद । asो कोई ख्याल हुवो नंद वास, प्रमेसर श्राय साचा पास ।